तुम बिन अब जिया न जाए
कुमार महेंद्रमस्त मलंगी हाव भाव,
मृगनयनी चाल ढाल ।
मोहक कोमल कपोल,
मादकता अनंत उछाल ।
रग रग सौंदर्य अवतरण,
श्रृंगार उल्लास उमंग जगाए।
तुम बिन अब जिया न जाए ।।
हिय प्रिय मान प्रतिष्ठा,
जीवन ज्योति उपमा ।
नयनन पटल प्रेम अथाह,
अंग प्रत्यंग लावण्य रमा ।
भाव भंगिमा अति कमनीय,
कदम आहट खुशियां लाए ।
तुम बिन अब जिया न जाए ।।
स्नेहिल सौम्य आभा बिंदु,
मनोरम लैंगिक स्पंदन ।
काम रति दर्शन अनुपम,
संवाद पटल प्रीत वंदन।
भाव भंगिमा आमंत्रण संकेत,
स्वीकृति मनहर मुस्कान सजाए ।
तुम बिन अब जिया न जाए ।।
सुखद मंगल स्वप्निल प्रभा,
मधुर मृदुल उर अठखेलियां ।
प्रणय भाषा शब्द अर्थ परे,
संसर्गमय अनूप पहेलियां ।
देह देहरी यौवन रस निर्झर,
हिय मिलन नवदीप जलाए ।
तुम बिन अब जिया न जाए ।।
कुमार महेंद्र
(स्वरचित मौलिक रचना)
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