Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

तुम बिन अब जिया न जाए

तुम बिन अब जिया न जाए

कुमार महेंद्र
मस्त मलंगी हाव भाव,
मृगनयनी चाल ढाल ।
मोहक कोमल कपोल,
मादकता अनंत उछाल ।
रग रग सौंदर्य अवतरण,
श्रृंगार उल्लास उमंग जगाए।
तुम बिन अब जिया न जाए ।।


हिय प्रिय मान प्रतिष्ठा,
जीवन ज्योति उपमा ।
नयनन पटल प्रेम अथाह,
अंग प्रत्यंग लावण्य रमा ।
भाव भंगिमा अति कमनीय,
कदम आहट खुशियां लाए ।
तुम बिन अब जिया न जाए ।।


स्नेहिल सौम्य आभा बिंदु,
मनोरम लैंगिक स्पंदन ।
काम रति दर्शन अनुपम,
संवाद पटल प्रीत वंदन।
भाव भंगिमा आमंत्रण संकेत,
स्वीकृति मनहर मुस्कान सजाए ।
तुम बिन अब जिया न जाए ।।


सुखद मंगल स्वप्निल प्रभा,
मधुर मृदुल उर अठखेलियां ।
प्रणय भाषा शब्द अर्थ परे,
संसर्गमय अनूप पहेलियां ।
देह देहरी यौवन रस निर्झर,
हिय मिलन नवदीप जलाए ।
तुम बिन अब जिया न जाए ।।


कुमार महेंद्र
(स्वरचित मौलिक रचना)
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews #Divya Rashmi News, #दिव्य रश्मि न्यूज़ https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ