अश्विन मास: पितृ, प्रकृति और पर्वों का संगम
सत्येन्द्र कुमार पाठक
विक्रम संवत का सातवाँ मास, और ग्रेगोरियन कैलेंडर के सितंबर-अक्टूबर के मध्य आने वाला अश्विन मास, भारतीय संस्कृति के तीन प्रमुख स्तंभों—पितृ ऋण, दैवीय शक्ति की उपासना और प्रकृति के परिवर्तन—को एक साथ लाने वाला एक गहन कालखंड है। इसे अश्विन, पितृ मास, क्वार मास, शक्ति मास, शरद मास और रास मास जैसे कई नामों से जाना जाता है। इस मास में पितृ पक्ष, जिउतिया पर्व, दशहरा, विजयादशमी और रास पर्व जैसे महत्त्वपूर्ण आयोजन होते हैं। अश्विन मास का नामकरण और खगोलीय रहस्य सनातन धर्म में खगोल विज्ञान के गहरे जुड़ाव को दर्शाता है। पूर्णिमा के समय चंद्रमा का अश्विनी नक्षत्र में स्थित होना इस मास की पहचान है। यह नक्षत्र, चिकित्सा, ज्ञान और सौंदर्य के अप्रतिम देवता अश्विनी कुमारों को समर्पित है। अश्विन मास केवल कैलेंडर का महीना नहीं, बल्कि भारतीय सभ्यता में कर्मकांड, अध्यात्म और खगोलीय परिवर्तन का एक महत्त्वपूर्ण चक्र है। अश्विन मास का आरंभ पितृ पक्ष से होता है, जो 16 दिनों की अवधि है और पितरों को समर्पित है। यह पूर्वजों को श्रद्धा और तर्पण के माध्यम से याद करने का समय है। श्राद्ध और तर्पण: इस काल में पूर्वजों के लिए श्राद्ध कर्म किए जाते हैं, जिससे उन्हें तृप्ति मिलती है और वे अपनी संतान को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं। अश्विन अमावस्या/महालया: इसे पितृ अमावस्या या महालया के नाम से जाना जाता है। इस दिन श्राद्ध कर्म पूरे होते हैं, और जिन पितरों की मृत्यु तिथि याद न हो, उनका श्राद्ध भी इसी दिन करने का विधान है । आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को, जिनके पिता जीवित हों, उनके लिए पौत्र द्वारा अपने पितामह और पितामही का श्राद्ध करने का विशेष विधान है। अश्विन मास में पितृपक्ष , जिउतिया , दशहरा , नवरात्र , दिव्य रासलीला , शरद पूर्णिमा , शक्ति सस्त्र अस्त्र पूजा पर्व प्रसिद्ध है । अश्विन मास को अश्विन ,अश्विनी , क्वार , दिव्य रस मास पितृ मास कहा गया है।
पितृ पक्ष की समाप्ति के तुरंत बाद, यह मास शक्ति की उपासना के पर्व में प्रवेश करता है।शारदीय नवरात्रि: आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शारदीय नवरात्रि प्रारंभ होती है, जो शक्ति की देवी माँ दुर्गा की नौ दिनों तक आराधना का पर्व है।विजयादशमी (दशहरा): नवरात्रि के बाद विजयादशमी मनाई जाती है, जो असत्य पर सत्य की और बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है।रास पर्व और दुर्गा पूजा: यह मास विशेष रूप से बंगाल और पूर्वी भारत में दुर्गा पूजा के भव्य उत्सव के लिए जाना जाता है, जो देवी पूजा के प्रति मास की आस्था को दर्शाता है। इसी मास में रास पर्व (शरद पूर्णिमा के निकट) भी मनाया जाता है।
अश्विन मास में शरद ऋतु (शारदा) का आगमन होता है, जो समृद्धि, नवीनीकरण और निर्मलता का प्रतीक है।
स्वच्छ आकाश: शरद ऋतु का आगमन आकाश को स्वच्छ कर देता है, जिससे खगोलीय पिंड अधिक स्पष्ट दिखाई देते हैं (विशेषकर अश्विनी तारा)। कृषि और जल: मौसम कृषि और जल स्रोतों के लिए भी महत्त्वपूर्ण माना जाता है। इस ऋतु की निर्मलता मन और वातावरण दोनों में सकारात्मकता लाती है। खगोलीय स्थिति: सूर्य का कन्या राशि में प्रवेश के साथ ही अश्विनी नक्षत्र का आरंभ होता है। अश्विनी कुमार ऋग्वेद के सबसे प्रमुख देवताओं में से एक हैं। वे देवताओं के चिकित्सक, चिकित्सा, स्वास्थ्य, गति और प्रकाश के देवता तथा प्रातःकाल के अग्रदूत (Heralds of Dawn) के रूप में पूजे जाते हैं। अश्विनी कुमारों का जन्म उनकी पहचान का केंद्र बिंदु है। माता-पिता: भगवान सूर्य (विवस्वान) और उनकी पत्नी माता संज्ञा (या सरन्यू) के पुत्र अश्विनी कुमार है। : सूर्य के तेज को सहन न कर पाने के कारण, माता संज्ञा अपनी छाया (छाया संज्ञा) को छोड़कर घोड़ी (अश्वी) का रूप धारण कर जंगल में चली गईं। सूर्यदेव ने भी घोड़े (अश्व) का रूप धारण किया और अश्वी (संज्ञा) के साथ उत्तर कुरु में मिलन किया, जिससे तेजस्वी पुत्रों (अश्विनी कुमारों) का जन्म हुआ। अश्व से उत्पन्न होने के कारण ही वे 'अश्विनी कुमार' कहलाए। नासत्य: अर्थ है 'सत्य से असत्य को दूर करने वाला' या 'अविचल'। यह नाम उनके ज्ञान, नैतिकता और सत्यनिष्ठ चिकित्सा से जुड़ा है। दस्र: अर्थ है 'उपहार देने वाला', 'चमत्कार करने वाला' या 'दयालु'। यह उनकी चमत्कारी शक्ति को दर्शाता है।
अश्विनी कुमारों का प्राथमिक गुण उनकी अद्वितीय चिकित्सा शक्ति है। वे 33 कोटि देवताओं के वैद्य हैं। च्यवन ऋषि को यौवन दान: उन्होंने वृद्ध और नेत्रहीन महर्षि च्यवन को दिव्य औषधि और स्नान के माध्यम से पुनर्जीवित कर युवा और स्वस्थ बना दिया, जिससे वे अपनी युवा पत्नी सुकन्या के साथ सुखपूर्वक रह सके।: च्यवन ऋषि की मदद से, इंद्र और अन्य देवताओं के विरोध के बावजूद, अश्विनी कुमारों ने देवताओं के यज्ञ में सोम-पान (अमृत-तुल्य पेय) का अधिकार प्राप्त किया, जो उन्हें अमरत्व की श्रेणी में स्थापित करता है। उन्होंने युद्ध में पैर गंवा चुकी रानी विष्पला को लोहे का कृत्रिम पैर (धातु से बना अंग) प्रदान किया।: उन्होंने भुज्यु को समुद्र में डूबने से बचाया (100 पतवारों वाली नौका से), दीर्घतमा ऋषि को दृष्टि प्रदान की, और एक अपाहिज को फिर से चलने लायक बनाया । वे अपने तेज गति वाले, प्रायः तीन पहियों वाले, स्वर्ण रथ के लिए जाने जाते हैं। यह रथ गति पर उनके नियंत्रण का प्रतीक है, जो उनकी त्वरित सहायता की क्षमता को दर्शाता है। मधु और ज्ञान: उन्हें "मधु" (शहद) से विशेष लगाव है, जिसे वे जीवन शक्ति और अमृत मानते हैं। उन्होंने महर्षि दधीचि से ब्रह्मविद्या (मधु विद्या) भी प्राप्त की थी। पांडव भाइयों नकुल (सौंदर्य, घोड़े का ज्ञान, चिकित्सा) और सहदेव (ज्ञान, ज्योतिष) को अश्विनी कुमारों का पुत्र माना जाता है, जिन्हें उनकी माता माद्री ने वरदान के रूप में प्राप्त किया था। आदर्श लोक और अश्विनी कुमारों का जन्म-स्थल उत्तर कुरु प्राचीन भारतीय ब्रह्मांड विज्ञान और भूगोल में वर्णित एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण और रहस्यमय स्थान है, जो अश्विनी कुमारों के जन्म आख्यान से सीधा जुड़ा हुआ है। उत्तर कुरु को अक्सर आदर्श लोक या देवताओं की भूमि के रूप में देखा जाता है। भूगोल के अनुसार, यह जम्बूद्वीप के नौ वर्षों में से सबसे उत्तरी वर्ष है, जो मेरु पर्वत के उत्तर में स्थित है। उत्तरी ध्रुव अक्सर उत्तरी ध्रुव के निकट या आर्कटिक क्षेत्रों में स्थित माना जाता है, जहाँ अत्यधिक ठंड और विशेष खगोलीय घटनाएँ होती हैं।: यह वह भूमि है जहाँ के निवासी अत्यंत सुखी, संतुष्ट, रोगमुक्त और धनवान हैं। वे दीर्घायु होते हुए भी सदैव युवा बने रहते हैं। यहाँ की भूमि पर कल्पवृक्ष पाए जाते हैं, जो हर कामना पूर्ण करते हैं। उत्तर कुरु का महत्त्व माता संज्ञा की तपस्या और अश्विनी कुमारों के जन्म-स्थल के रूप में है। संज्ञा का तपस्या स्थल: सूर्य देव के तेज को सहन न कर पाने पर, माता संज्ञा ने अश्वी रूप में कठोर तपस्या करने के लिए पृथ्वी पर स्थित उत्तर कुरु को चुना।इसी गुप्त, पवित्र और सुरक्षित स्थान पर अश्व और अश्वी (सूर्य और संज्ञा) के मिलन से दिव्य वैद्य अश्विनी कुमारों का जन्म हुआ। उत्तर कुरु को केवल एक भौतिक स्थान के रूप में नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक अवस्था के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है। यह उस आदर्श स्थिति का प्रतीक है जिसे केवल पुण्य कर्मों से ही प्राप्त किया जा सकता है। उत्तरी स्थिति में होना इसे दिव्यता और पवित्रता का सर्वोच्च बिंदु बनाता है, जो ब्रह्म-ऊर्जा के केंद्र (ध्रुव तारा) से जुड़ा है।
: अश्विनी नक्षत्र और दक्ष प्रजापति की पुत्री अश्विनी - अश्विन मास और अश्विनी कुमारों का नाम खगोलीय पिंड, अश्विनी नक्षत्र से जुड़ा है। यह नक्षत्र दक्ष प्रजापति की पुत्री और चंद्रमा की पत्नी भी है। पहला अश्विनी नक्षत्र 27 नक्षत्रों में प्रथम है। इसके अधिष्ठाता देवता दिव्य वैद्य अश्विनी कुमार हैं। प्रजापति दक्ष की पुत्री अश्विनी (अन्य 26 नक्षत्र कन्याओं के साथ) का विवाह चंद्रमा से हुआ था। चंद्रमा अपनी पत्नी रोहिणी से अत्यधिक प्रेम करते थे और अश्विनी सहित अन्य 26 पत्नियों की उपेक्षा करने लगे। उपेक्षित कन्याओं की शिकायत पर, दक्ष प्रजापति ने क्रोधित होकर चंद्रमा को 'क्षय' (क्षीण होने) का श्राप दिया है। देवताओं के आग्रह और चंद्रमा की तपस्या पर, भगवान शिव ने इस श्राप को सीमित किया। यह तय हुआ कि चंद्रमा हर 15 दिन (कृष्ण पक्ष) क्षीण होंगे और अगले 15 दिन (शुक्ल पक्ष) पुनः अपने तेज को प्राप्त करेंगे, जो आज भी चंद्रकलाओं के रूप में देखा जाता है।
अश्विनी कुमार वैदिक युग से लेकर पुराणों तक पूजे जाने वाले, सदैव सक्रिय, परोपकारी और भक्तों के संकटों को दूर करने वाले देवता हैं। उनके आख्यान ज्ञान, गति, और चिकित्सा के महत्त्व को स्थापित करते हैं। अश्विन मास इन्हीं दिव्य शक्तियों, पितृ ऋण, और प्रकृति के शुद्धिकरण को एक साथ लाता है। यह मास भारतीय संस्कृति के लिए वह कालखंड है जहाँ जीवन के तीन अनिवार्य तत्त्व—पितरों के प्रति दायित्व, दैवीय शक्ति की शरण और आदर्श लोक (उत्तर कुरु) की पौराणिक प्रेरणा—का संगम होता है। यह हमें अंधकार से प्रकाश की ओर, असत्य से सत्य की ओर, और रोग से आरोग्य की ओर ले जाने का आह्वान करता है।
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