ऋषि की दुनिया
ऋषि की दुनिया है यह ,ऋषि की पावन धरती ।
सुख दुःख में एक रहे ,
सुखद आनंद है वरती ।।
दुनिया है ऋषि मुनि की ,
जहॅं शापित रावण कंस ।
प्रताप उन ऋषि मुनि की ,
किंतु बढ़े रावण कंस वंश ।।
आबादी रावण कंस की ,
जिनके घातक होते दंश ।
प्रबल प्रताप ऋषि मुनि की ,
दंश घटकर बचता है अंश ।।
युग तो यह कलियुग किंतु ,
ऋषि मुनि प्रताप प्रबल है ।
होता है घात बहुत ही किंतु ,
मात खाता कल बल छल है ।।
कलि घातक द्वापर त्रेता से ,
किंतु ऋषि मुनि का बल है ।
जन जन में भरा आज छल ,
पर ऋषि मुनि निश्छल हैं ।।
ईश्वर की असीम कृपा उनपे ,
जिनसे सुरक्षित धरातल है ।
जी रहे आज जीव सुरक्षित ,
जो ऋषि मुनि कृतिफल है ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार ।
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