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हदों में रहकर, मन्जिल की आस करते रहे,

हदों में रहकर, मन्जिल की आस करते रहे,

बडे नासमझ थे, बेवफा से आस करते रहे।


समन्दर खारा है, प्यास बुझा नही सकता,
बरसात बाद, मीठे पानी की आस करते रहे।


जानते थे उसकी फितरत, धोखा देना ही थी,
धोखा खाकर भी, सुधरने की आस करते रहे।


छूने की चाह आसमां, हौसलों की जरूरत होती है,
उतरेगा आसमां जमीं पर, ख्वाबों में आस करते रहे।


था बाजुओं में दम, जज्बा देश पर कुर्बान होने का,
सरहद पर सैनिक, अखण्ड भारत की आस करते रहे।


मिलेगा मान वीरों को, सहादत उनकी रंग लायेगी,
सीमा पर डटे सैनिक, वतन से यही आस करते रहे।

डॉ अ कीर्तिवर्धन
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