जाग जाग सनातन जाग
जाग जाग रे सनातन जाग ,फुफकार रहा सामने नाग ।
खिलखिलाया अबतक जो ,
हो रहा है मायूस वह बाग ।।
या तो कुचल दे जूते से फन ,
या फन पे ही गोली दाग ।
हो रहे हैं अपशकुन उसके ,
सिर उसके मॅंडराते काग ।।
मिटा दे उसके काक राग ,
या लगा दे बस्ती में आग ।
कर दे उनकी सफाई ऐसी ,
रह न जाए कहीं भी दाग ।।
उठा ले हथियार बढ़ो आगे ,
बहुत बने तू मुलायम साग ।
हो जाए हिन्दू राष्ट्र घोषित ,
खुशी आनंद से खेलें फाग ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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