सच्ची सेवा
रचना ---✍️ डॉ. रवि शंकर मिश्र "राकेश"*"""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""*
मन के भीतर प्रेम बसाओ,
स्वार्थ न रखो कोई कारण।
भेदभाव सब दूर मिटाओ,
यही तो होती सच्ची साधन।।
भूखे को भोजन दो हँसकर,
दुखी जनों का दर्द मिटाकर।
रूठे मन को गले लगाकर,
जीवन बनता पावन चरण।
मन के भीतर प्रेम बसाओ,
यही तो होती सच्ची साधन।।
मंदिर मस्जिद एक समान हैं,
ईश्वर हर प्राणी में वास।
बोल मिठे हों, कर्म महान हों,
यही प्रभु की सच्ची आस।।
जो करे मदद सच्चे मन से,
उस पर होता खुदा का वरदान।
मन के भीतर प्रेम बसाओ,
यही तो होती सच्ची साधन।।
पेड़ लगाओ, छाया बाँटो,
जल बचाओ, धरती सँवारो।
माँ प्रकृति का मान बढ़ाओ,
जीवन का यह सच्चा विचारो।।
प्रकृति रक्षा ही पूजा बनती,
यही है जीवन का उद्देश्य महान।
मन के भीतर प्रेम बसाओ,
यही तो होती सच्ची साधन।।
झूठ कपट सब दूर हटाओ,
सत्य का दीप सदा जलाओ।
हँस कर बाँटो सुख की रोटी,
सबको अपने जैसा पाओ।।
युगों-युगों तक याद रहेगी,
जो कर दे मानव का भला।
मन के भीतर प्रेम बसाओ,
यही तो होती सच्ची साधन।।
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