यही राह सही
रचना --- डॉ रवि शंकर मिश्र "राकेश"
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कण - कण में चमक है,
बस पहचानने की देर है।
सभी का हृदय सागर है,
बस गहराई की फेर है।
कुंदन तो वही होगा,
जो अग्नि से गुज़र जाएगा।
अपनापन भी वहीं खिलेगा,
जो मन से निखर जाएगा।
राहें कठिन हैं तो क्या,
चलना ही धर्म है।
हर परिवर्तन में छिपा,
इंसान का नया कर्म है।
वक्त लगे तो लगे,
यही तो जीवन का चलन है।
जो सच्चा हो मन से,
वही असली ‘अपनापन’ है।
समय की कसौटी पे,
जो खरा उतर जाए।
वो ही रिश्ता हर मौसम में,
बेझिझक मुस्कुराए।
चेहरों की चमक नहीं,
मन की नमी चाहिए।
साथ तो सब देते हैं,
पर समझ वही चाहिए।
जब मन निर्मल और निश्छल हो,
तो दूरी भी पास लगे।
हर खामोशी में तभी कुछ,
अंतर मन की अहसास जगे।
कुंदन बनना कठिन है,
पर सुंदर सफ़र यही।
मन को मन तक पहुँचाने की, यही उत्तम राह सही।
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