फिर याद आये वो
दिल में बसे हो तुम,तो कैसे तुम्हें भूले।
उदासी के दिनों की,
तुम हम-दर्द थी।
इसलिए तो मुझे तुम,
बहुत याद आते हो।
मगर अब तुम मुझे,
शायद भूल गए हो।।
आज फिर से तुम्ही ने,
निभा दी अपनी दोस्ती।
इतने वर्षों के बाद,
तुम्ही ने किया आज याद।
मैं शुक्र गुजार हूँ प्रभु का,
जिसने याद दिला दिया।
कि तुम्हारा कोई दोस्त,
आज फिर तकलीफ में है।।
मैं कैसे भूल जाऊँ,
अब उन दिनों को।
जब नया-नया आया था,
तुम्हारे इस शहर में।
न जान न पहचान थी,
मेरी तुम्हारे शहर में।
फिर भी तुमने मुझे,
अपना बना लिया था।।
मुझे समझाया था कि,
दोस्ती कैसी होती है।
एक इंसान दूसरे का,
जब थाम लेता है हाथ।
और उसके दुखो को,
निस्वार्थ भावों से।
जो उन्हें दूर करता है,
वही सच्चा दोस्त होता है।।
इंसानियत आज भी है,
लोगों के दिलो में जिंदा।
जो इंसान को इंसान से,
जोड़कर साथ चलता है।
और मानव धर्म को,
दिल से निभाता है।
मुझे फक्र है तुम पर,
जो सदा साथ रहे मेरे।।
जय जिनेन्द्र
संजय जैन "बीना" मुम्बई
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