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वैवस्वत मनु, देवमाता अदिति और सूर्योपासना

वैवस्वत मनु, देवमाता अदिति और सूर्योपासना

सत्येन्द्र कुमार पाठक
भारतीय पौराणिक इतिहास का आरंभिक काल, विशेषकर सप्तम मन्वन्तर, महर्षि कश्यप की पत्नी देवमाता अदिति और उनके पुत्रों आदित्यों के वंश से जुड़ा हुआ है। यह वंश न केवल देवताओं का मूल स्रोत है, बल्कि इसी से वैवस्वत मनु का प्रादुर्भाव हुआ, जिन्हें वर्तमान मानव जाति का आदि-पिता माना जाता है।
देवमाता अदिति का वंश ब्रह्मा जी से जुड़ा हुआ है। वह ब्रह्मा जी के पौत्री, दक्ष प्रजापति की पुत्री संप्रति की पुत्री थीं। उनका विवाह ब्रह्मा जी के पुत्र मरीचि के पुत्र, महान ऋषि कश्यप से हुआ। अदिति को 'देवमाता' कहा जाता है, जिसका अर्थ है देवताओं की माता। अदिति के 12 तेजस्वी पुत्रों को द्वादश आदित्य कहा गया है, जो सृष्टि के कल्याण और व्यवस्था के प्रतीक हैं। ये आदित्य इस प्रकार हैं: विवस्वान (सूर्य देव) , अर्यमा ,पूषा ,त्वष्ठा , सविता ,भग ,धात , वैवस्वत (मनु) , वरुण ,मित्र ,इंद्र , विष्णु (वामन रूप में) है। इनके अतिरिक्त, अदिति की एक पुत्री इला का भी उल्लेख मिलता है, जो वंश विस्तार में महत्त्वपूर्ण थीं। इन पुत्रों में, विवस्वान (सूर्य देव) का स्थान सृष्टि के काल-चक्र और ऊर्जा के स्रोत के रूप में अत्यंत महत्वपूर्ण है।
देवमाता अदिति के पुत्र विवस्वान (सूर्य देव) का विवाह विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा (या विवस्वती संज्ञा) से हुआ। इस तेजस्वी जोड़े की संतानों ने सृष्टि के काल-चक्र और धर्म-व्यवस्था में निर्णायक भूमिका निभाई:मन्वन्तर संचालक वैवस्वत मनु: ये वर्तमान (सातवें) मन्वन्तर के संचालक हैं और इन्हें मानव जाति का 'आदि-पिता' माना जाता है। मृत्युदेव यम धर्मराज: मृत्यु और धर्म के देवता।देव वैद्य अश्विनी कुमार: देवताओं के चिकित्सक। यमुना: नदी के रूप में प्रतिष्ठित पुत्री थी । वैवस्वत मनु ने ही जल प्रलय के पश्चात् शेष बची सृष्टि को पुनः स्थापित किया। उन्हें मानव जाति का प्रथम पिता कहा जाता है, जिससे आगे चलकर सूर्यवंश और चंद्रवंश जैसी महान राजवंशावलियाँ निकलीं। पत्नी और संतान: मनु की पत्नी श्रद्धा थीं, जिनसे उनके नौ तेजस्वी पुत्र और एक पुत्री थीं: पुत्र: इक्ष्वाकु, नरिष्यन्त, करुष, धृष्ट, शर्याति, नभग, पृषध्र, कवि। पुत्री: इला थी । वैवस्वत मनु का कार्यक्षेत्र प्राचीन भारतीय सभ्यता के विकास में केंद्रीय भूमिका निभाता है: सरस्वती नदी क्षेत्र: उनका मुख्य निवास और कार्यक्षेत्र प्राचीन काल की महत्वपूर्ण नदी सरस्वती के किनारे माना जाता है। यह क्षेत्र वैदिक संस्कृति का केंद्र था। उत्तर भारत: उनका साम्राज्य हिमालय के दक्षिण में और गंगा नदी के मैदानी इलाकों तक फैला था। अयोध्या: पौराणिक स्रोतों के अनुसार, उनका संबंध अयोध्या से भी था, जो बाद में उनके ज्येष्ठ पुत्र इक्ष्वाकु के वंशजों (सूर्यवंश) की राजधानी है।वैवस्वत मनु के पुत्रों ने भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अपने वंश और साम्राज्य की स्थापना की, जिससे सभ्यता का भौगोलिक विस्तार हुआ।
इक्ष्वाकु सूर्यवंश अयोध्या, कोसल। पुत्र निमि का क्षेत्र: गंडकी प्रदेश, बागमती प्रदेश, वर्तमान बज्जि, मिथिला, नेपाल का क्षेत्र। ,शर्याति शैर्यत/शार्यात कीकट प्रदेश (वर्तमान मगध, सोन प्रदेश, फल्गु प्रदेश, पुनपुन प्रदेश, गांगेय प्रदेश), पंजाब, हरियाणा और उसके आसपास के क्षेत्र। , करुष कारूष मध्य भारत क्षेत्र, बघेलखण्ड, कौशाम्बी (कौशाम्बी वंशीय)। ,नरिष्यन्त नैरिष्यन्त (पश्चिमी क्षेत्र) , धृष्ट धृष्टकुल/धृष्टवंश (मध्यवर्ती क्षेत्र) ,नभग नाभाग/नाभागवंशी (उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र) , पृषध्र पृषध्रवंश (दक्षिणी क्षेत्र) ,कवि कविवंश/काव्यवंशी (धार्मिक और आध्यात्मिक क्षेत्र) ,शर्याति वंश का कीकट/मगध में योगदान:शर्याति का कार्यक्षेत्र आरंभ में उत्तर भारत (पंजाब, हरियाणा) में था, किंतु बाद में उनका संबंध कीकट प्रदेश (वर्तमान बिहार के मगध, सोन, फल्गु, पुनपुन क्षेत्र) से जुड़ा। उनकी पुत्री सुकन्या का विवाह महान च्यवन ऋषि से हुआ। सुकन्या और च्यवन ऋषि के पुत्र प्रमति ने ही सोन प्रदेश, गांगेय प्रदेश आदि की नींव रखी थी, जो इस क्षेत्र में मनु के वंश के प्रभाव को स्थापित करता है ।
वैवस्वत मनु की पुत्री इला का विवाह बुध से हुआ, जो चंद्र (सोम) और तारा के पुत्र थे। बुध को मगध, कीकट, फल्गु प्रदेश के क्षेत्र का राजा माना जाता है। इला और बुध के वंश से चंद्रवंश का उदय हुआ।इला-बुध के पुत्रों के क्षेत्र: गय ने गया , उत्कल ने उड़ीसा , विशाल ने वैशाली (वर्तमान बिहार) , इक्ष्वाकु के पुत्र निमि वंशीय ने मिथिला , नेपाल । वसु: वसुनागर।विशाल: बज्जि प्रदेश (वर्तमान कीकट, मगध, झारखण्ड क्षेत्र)। है। यह विवरण दर्शाता है कि मनु के वंशजों ने भारत के उत्तर-पश्चिम से लेकर मध्य और पूर्वी क्षेत्रों (मगध, मिथिला) तक सनातन धर्म के सौर संस्कृति सभ्यता का विकास हुआ था । पौराणिक स्रोतों के अनुसार, वैवस्वत मनु के वंशजों और उनके निकट संबंधियों ने सूर्योपासना को अपने-अपने क्षेत्रों में स्थापित किया। वैवस्वत मनु की पुत्री इला, उनके दामाद बुध, पुत्र शर्याति और इक्ष्वाकु, तथा च्यवन ऋषि एवं देव वैद्य अश्विनी कुमार ने अपने क्षेत्रों में सूर्य की पूजा और छठ पूजा (सूर्य षष्ठी व्रत) का आरंभ किया। यह परंपरा आज भी पूर्वी भारत, विशेष रूप से बिहार, झारखण्ड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में एक महान और पवित्र पर्व छठ के रूप में प्रचलित है, जो आदिकाल में हुए सूर्य के तेज और जीवन-प्रदायिनी शक्ति के प्रति श्रद्धा को दर्शाता है। देवमाता अदिति के वंशज और वैवस्वत मनु का इतिहास केवल एक पौराणिक गाथा नहीं है, बल्कि यह प्राचीन भारतीय सभ्यता के भौगोलिक विस्तार, राजनैतिक वंशावलियों (सूर्यवंश और चंद्रवंश), और सांस्कृतिक तथा धार्मिक परंपराओं (जैसे छठ पूजा) की जड़ों को दर्शाता है। मनु और उनके पुत्रों के माध्यम से ही मानव समाज ने संगठित होकर भारत के विशाल भूभाग पर अपनी संस्कृति का विस्तार किया था ।
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