अपराधियों को वोट न करें — यह लोकतंत्र के लिए खतरा है
— डॉ. राकेश दत्त मिश्र, संस्थापक, दिव्य जीर्णोद्धार फाउंडेशन
पटना — दिव्य जीर्णोद्धार फाउंडेशन के संस्थापक एवं सामाजिक चिंतक डॉ. राकेश दत्त मिश्र ने राजनीति में बढ़ते अपराधीकरण को लेकर गहरी चिंता व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि आज भारतीय लोकतंत्र के समक्ष सबसे बड़ा खतरा किसी बाहरी शक्ति से नहीं, बल्कि राजनीति और अपराध के बढ़ते गठजोड़ से है। दुर्भाग्य यह है कि यह विषय अब न तो चुनावी विमर्श का हिस्सा रह गया है, न ही जनता, दलों या मीडिया की प्राथमिकता में।
🔹 राजनीति में अपराध का प्रवेश — लोकतंत्र की जड़ें हिला रहा है
डॉ. मिश्र के अनुसार, राजनीति में अपराधियों की घुसपैठ ने व्यवस्था को भीतर से खोखला कर दिया है। “जब अपराधी राजनीति का हिस्सा बन जाते हैं, तो कानून और व्यवस्था कमजोर होती है, न्याय प्रणाली प्रभावित होती है और लोकतंत्र का नैतिक आधार डगमगा जाता है,” उन्होंने कहा।
उन्होंने यह भी कहा कि ऐसे व्यक्ति जब जनता के प्रतिनिधि बनते हैं, तो लोकतंत्र की आत्मा आहत होती है। जनसेवा की भावना की जगह सत्ता, धनबल और भय का तंत्र हावी हो जाता है।
🔹 लोकतंत्र के लिए सीधा खतरा
डॉ. मिश्र का मानना है कि अपराध पृष्ठभूमि वाले नेताओं का बढ़ता प्रभाव लोकतंत्र के लिए सीधा खतरा है। ऐसे नेता जनता के सच्चे प्रतिनिधि नहीं, बल्कि भय, धन और प्रभाव के प्रतीक बन जाते हैं। संसद और विधानसभाओं में इनकी मौजूदगी जनता के विश्वास को कमजोर करती है और लोकतांत्रिक संस्थानों की गरिमा पर प्रश्नचिह्न लगाती है।
🔹 राजनीतिक दलों की भूमिका — “टिकट अपराधियों को नहीं, जनसेवकों को मिलना चाहिए”
डॉ. मिश्र ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि राजनीतिक दल इस स्थिति के लिए कम जिम्मेदार नहीं हैं। “जब दल केवल जीत की संभावना देखकर टिकट देते हैं, तो वे लोकतंत्र की आत्मा से खिलवाड़ करते हैं।”
उनके अनुसार, यह कहना कि “चुनाव जीतने के लिए अपराधियों का सहारा लेना मजबूरी है” — दरअसल एक गंदी चाल है। यदि राजनीतिक दल ठान लें कि वे केवल स्वच्छ और जनसेवी प्रत्याशी ही उतारेंगे, तो हालात बहुत तेजी से बदल सकते हैं।
🔹 जनता की भूमिका — परिवर्तन मतदाता के हाथ में
डॉ. मिश्र ने जनता की भी जिम्मेदारी पर जोर दिया। उन्होंने कहा, “जब जनता अपराधियों को बार-बार वोट देकर सत्ता में भेजती है, तो वह इस प्रवृत्ति को वैधता देती है।”
उन्होंने आह्वान किया कि जनता अपने वोट की शक्ति को समझे और उसे भय या लालच के बजाय विवेक से प्रयोग करे। “बदलाव की शुरुआत मतदाता से ही होनी चाहिए,” उन्होंने कहा।
🔹 सुधार की दिशा — कानून, समाज और सोच में बदलाव
डॉ. मिश्र ने कहा कि राजनीति से अपराधीकरण मिटाने के लिए केवल कानून नहीं, बल्कि समाज की सोच में भी बदलाव जरूरी है। उन्होंने सुझाव दिया कि कठोर कानूनों के साथ राजनीतिक दलों की जवाबदेही तय होनी चाहिए।
साथ ही, चुनाव आयोग को ऐसी व्यवस्था बनानी चाहिए जिससे आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्ति को चुनाव लड़ने से रोका जा सके।
🔹 मीडिया और सिविल सोसाइटी की भूमिका
उन्होंने मीडिया और सिविल सोसाइटी से भी अपील की कि वे इस मुद्दे पर एकजुट होकर अभियान चलाएं। “मीडिया की भूमिका केवल खबर देने तक सीमित नहीं होनी चाहिए — उसे जनता को जागरूक करने और स्वच्छ राजनीति के लिए जनमत तैयार करने का कार्य भी करना चाहिए।”
🔹 युवाओं के लिए संदेश — “राजनीति से दूरी नहीं, उसमें शुचिता लाओ”
डॉ. मिश्र ने युवाओं से आह्वान किया कि वे साफ-सुथरी छवि और ईमानदार नीयत के साथ राजनीति में आगे आएं।
“जब तक ईमानदार और जागरूक युवा राजनीति में नहीं आएंगे, तब तक यह गंदगी साफ नहीं हो सकती,” उन्होंने कहा।
उन्होंने यह भी कहा कि राजनीति को सुधारने के लिए भीतर से परिवर्तन आवश्यक है, और इसके लिए युवाओं का सक्रिय होना सबसे बड़ा हथियार है।
🔹 निजी अनुभव — अपराध-राजनीति गठजोड़ की भयावहता
अपने पत्रकारिता जीवन के अनुभव साझा करते हुए डॉ. मिश्र ने बताया कि उन्होंने कई बार राजनीति और अपराध के गठजोड़ को बहुत करीब से देखा है। “नेता अपराधियों के पैसों से चुनाव लड़ते हैं और फिर वही अपराधी सत्ता की छाया में सुरक्षित हो जाते हैं।”
उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि इस सच्चाई को उजागर करने के कारण उन्हें कई बार धमकियों और दबावों का सामना करना पड़ा, परंतु “सच कहने का संकल्प ही मेरी ताकत है,” उन्होंने दृढ़ता से कहा।
🔹 समाधान — स्वच्छ राजनीति ही असली जीत
डॉ. मिश्र ने कहा कि अगर उन्हें अवसर मिले, तो वे राजनीति में उम्मीदवारों के चयन के लिए पारदर्शी और कानूनी रूप से बाध्य प्रक्रिया लागू करेंगे।
उन्होंने सुझाव दिया कि जनता को भी यह अधिकार दिया जाए कि वे आपराधिक छवि वाले प्रत्याशियों को चुनाव से बाहर कर सकें।
उनके अनुसार, जब तक जनता, मीडिया, और राजनीतिक दल मिलकर राजनीति से अपराध को बाहर नहीं करेंगे, तब तक लोकतंत्र खतरे में रहेगा।
🔹 निष्कर्ष के तौर पर डॉ. राकेश दत्त मिश्र ने कहाकि :-
“चुनाव जीतना ही राजनीति का लक्ष्य नहीं होना चाहिए। सच्ची जीत वही है, जब राजनीति जनसेवा और नैतिकता का माध्यम बने।”
उन्होंने जनता से आह्वान किया कि अपराधियों को वोट न दें, स्वच्छ और सेवा-भावी उम्मीदवारों को चुनें। यही लोकतंत्र को बचाने का सबसे सशक्त और नैतिक मार्ग है।
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