मां की विदाई
डॉ अनिता देवी शिक्षिका
दस भुजाओं वाली मां, करुणा की मूरत,
तेरे बिना सूना लगता है यह धाम सुरम्य।
ढोल-नगाड़े थम गए, दीपक की लौ भी रोती,
मां तू बिन विरह की पीड़ा, हर आंखों में खोटी।
सिंहवाहिनी मां, शक्ति का प्रतीक,
तेरे चरणों में ही है सारा संगीत।
तेरे संग बीते ये दिन कितने प्यारे,
अब विरह की घड़ियां मां, कैसे सहारे।
असुर विनाशिनी, संकट हरनी माता,
तेरे बिना जग सूना, दुख हरने वाली भ्राता।
आंचल तेरा याद रहेगा, रक्षा का वचन निभाएंगे,
तेरे दिए संस्कारों को जीवनभर अपनाएंगे।
"अगले बरस आना मां", यही पुकार है,
आंखों से आंसुओं की अविरल धार है।
विदाई की घड़ी भारी, मन रो-रो कर कहे,
मां दुर्गे, जल्दी लौट आना, यही मन दिल चाहे!
अनिता रो पंडि है मां 🙏♥️
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