गुरु तत्व का आलोक
✍️ डॉ. रवि शंकर मिश्र "राकेश"आचार्य-प्रसाद समय पे आता, भाग्य जगे जब मान।
वृंदावन-दर्शन सम कहिए, प्रेम बढ़े पहचान।।
रुक-रुक दर्शन भाव जगाते, मन में उठे उमंग।
हे नाथ! चरण तुम्हारे वंदे, मिटे सभी अब दंग।।
गुरु न तन है, न नाम कोई, न केवल देह स्वरूप।
वह तो शक्ति अमर अविनाशी, चेतन चिर अनूप।।
गुरु श्रद्धा का दीप जलाता, मन के तम को हरता।
अज्ञानांध तमस में जाकर, सत्व का सूर धरता।।
गुरु समर्पण, गुरु प्रणत भावना, गुरु ही सच्चा दास।
जिसने अंतर खोला मन का, वही बनै प्रकाश।।
कब कौन मिले, कैसे पथ दे, यह श्रद्धा का भाव।
दृष्टि जगे जब अंतः कर में, मिल जाएं प्रभु नवाव।।
गुरु प्रार्थन से, गुरु कृपा से, मिलता हृदय समर्पण।
भाग्यवान जन पाते इसको, छोड़ समस्त विकर्षण।।
गुरु तत्त्व वही जो आत्मा में, गूँजे हर पल नाम।
जय श्रीकृष्ण सुगुरु की महिमा, नित वंदन प्रणाम।।
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