"बिहारी—विनम्र तेजस्वी परिश्रमी"
रचनाकार -- डॉ. रवि शंकर मिश्र"राकेश"
ज्ञान भूमि, तप भूमि अद्भुत,
नदियों संग इतिहास अमर।
गंगा की गोद सदा पावन,
पल पल जन जन में असर।
सत्यम्, सेवा, कर्म पथी,
मानवता का दीप प्रखर।
बिहारी—
विनम्र तेजस्वी परिश्रमी।
होते साहसी और निडर।।
विद्या की पावन राजधानी,
नालंदा विक्रम की शान।
पाटलिपुत्र से जग परिचित,
लिखता गौरव का विधान।
संघर्षों में मुस्कान रखे,
संयम उसका पहचान।
बिहारी—
विनम्र तेजस्वी परिश्रमी।
और होते कर्म से महान।।
लोक गीत में मधुर सरगम,
भोजपुरी, मैथिली का मान।
मगही स्वर में प्रेम छलकता,
संस्कृति का अद्भुत गान।
हर त्योहार में रौनक फैले,
मन मंदिर में उत्सव ज्ञान।
बिहारी—
विनम्र तेजस्वी परिश्रमी।।
मानवता के लिए देते जान।।
माटी की सोंधी महक अनोखी,
लिट्टी चोखा स्वाद अपार।
मखाना, सिल्क, मधुबनी कला,
विश्व में करती जयघोष बारंबार।
छठ की आराधना में झुके,
सूर्यदेव भी दें उपहार।
बिहारी—
विनम्र तेजस्वी परिश्रमी।।
प्रकृति से भी करते प्यार।।
सेवा, श्रम और सादगी उसका,
जीवन है आदर्श उदार।
राष्ट्र निर्माण की हर डगर पर,
देता शक्ति, देता विचार।
धरती पुत्र, कर्मयोगी सच्चा,
भारत का वह श्रृंगार।
बिहारी—
विनम्र तेजस्वी परिश्रमी।।
लाए जीवन में बहार।।
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