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"पुरुषार्थ के चार सोपान"

"पुरुषार्थ के चार सोपान"

रचनाकार —डॉ. रवि शंकर मिश्र "राकेश"

प्रथम सोपान - विद्यार्थी जीवन
ज्ञान दीप जलाओ मन में,
अंधकार को दूर भगाओ।
शिक्षा ही है मूल सफलता,
स्वयं को उजियारा बनाओ।।
सपनों को साकार करो,
संघर्षों से मत घबराओ।
पुरुषार्थ का पहला चरण है,
सीखो, जागो, आगे बढ़ जाओ।।


द्वितीय सोपान - युवावस्था
यौवन ज्वाला कर्म पुकारे,
मेहनत को मत टालो।
परिश्रम के हर मोती से,
जीवन का हार सँवारो।।
धन नहीं बस साधन मात्र है,
सच्चा अर्थ है प्रयास में।
कर्तव्य धर्म निभाओ निष्ठा से,
रहो सदा विश्वास में।।


तृतीय सोपान — प्रौढ़ जीवन
अनुभव का अमृत बरसे,
सेवा की वर्षा बन जाओ।
दान, धर्म और प्रेम मार्ग से,
संसार को पथ दिखलाओ।।
जो पाया है, वह लौटाओ,
हित में जन-जन के कल्याण।
यही है जीवन का तीसरा,
पुण्य पुरुषार्थ महान।।


चतुर्थ सोपान - वृद्धावस्था
जब जीवन संध्या ढलती है,
स्मृतियाँ दीपक बन जातीं।
जो किया, वही लौट आता,
कर्मों की गूँजें गातीं।।
यदि कर्तव्य निभाए सच्चे,
मन में न पश्चात्ताप रहे।
संतोष की मधुर मुस्कान लिए,
आत्मा पावन आप रहे।।


जीवन चार सोपानों का,
अमिट शाश्वत एक गान।
विद्या, कर्म, सेवा, शांति,
यही पुरुषार्थ का ज्ञान।।
समय न खोओ व्यर्थ कभी,
हर क्षण है वरदान।
कर्म पथ ही मोक्ष का रस्ता,
यही सनातन की पहचान।।
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