एक राष्ट्र श्रेष्ठ राष्ट्र का मंत्र बताने वाले पटेल साहब भारत के देवदूत थे — डॉ. विवेकानंद मिश्र

गया से रिपोर्ट –
सरदार वल्लभभाई पटेल जयंती के अवसर पर भारतीय राष्ट्रीय ब्राह्मण महासभा के तत्वावधान में एक विशेष संगोष्ठी का आयोजन राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. विवेकानंद मिश्र के आवास पर किया गया। इस आयोजन में देश की एकता, अनुशासन और समर्पण जैसे मूलभूत विषयों पर सार्थक और गहन चर्चा हुई। कार्यक्रम में ब्राह्मण समाज, स्थानीय समाजसेवी, शिक्षाविद्, जनप्रतिनिधि और विभिन्न सामाजिक संगठनों के गणमान्य सदस्य उपस्थित रहे। सभा का वातावरण राष्ट्रभक्ति, श्रद्धा और जिम्मेदारी के भाव से ओतप्रोत था।
सभा का शुभारंभ डॉ. विवेकानंद मिश्र के प्रेरक संदेश से हुआ। उन्होंने कहा —
“सरदार वल्लभभाई पटेल केवल भारत के लौह पुरुष नहीं थे, वे एक राष्ट्र श्रेष्ठ राष्ट्र का मंत्र देने वाले भारत के देवदूत थे। उन्होंने जिस दूरदर्शिता और दृढ़ता से 562 रियासतों को एक सूत्र में बाँधा, वह कार्य न केवल राजनीतिक एकता का प्रतीक था बल्कि सांस्कृतिक अखंडता की अमर गाथा भी थी।”
डॉ. मिश्र ने युवाओं से आह्वान किया कि वे पटेल जी के विचारों को केवल इतिहास की पुस्तकों तक सीमित न रखें, बल्कि उन्हें जीवन के व्यवहार और राष्ट्र-निर्माण की दिशा में अपनाएँ।
बी.एन. पांडे ने कहा कि आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है — देशहित को व्यक्तिगत स्वार्थ से ऊपर रखना। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि हर नागरिक को कानून और व्यवस्था की रक्षा में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए।
साहित्यकार राधामोहन मिश्र माधव ने पटेल जी के योगदान को स्मरण करते हुए कहा —
“पटेल जी ने न केवल राजनीतिक एकता की नींव रखी, बल्कि राष्ट्रीय दायित्व और सांस्कृतिक अस्मिता के स्तंभ भी खड़े किए। उनके विचारों में भारत की आत्मा बसती है।”
आभासीय रूप से अध्यक्षता कर रहे आचार्य सचिदानंद मिश्र ‘नैकी’ ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि पटेल जी का जीवन देशप्रेम, कर्तव्य और कर्मयोग का अनुपम उदाहरण है। उन्होंने कहा —
“आज के युग में हमें पटेल के आदर्शों को आत्मसात कर व्यवहार में अनुशासन और निष्ठा लानी होगी, तभी हम सामाजिक और राष्ट्रीय संकटों का सामना दृढ़ता से कर पाएँगे।”
शिवचरण डालमिया एवं उषा डालमिया ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि नेतृत्व का अर्थ पद नहीं, बल्कि त्याग और साहस है। उन्होंने कहा कि जब समाज में नेतृत्वहीनता दिखती है, तो यह इस बात का संकेत है कि हमारी राष्ट्रीय भावना कमजोर पड़ रही है।
सभा में यह सर्वसम्मति से विचार प्रकट किया गया कि शिक्षा संस्थान, परिवार और युवा संगठन मिलकर नागरिक जिम्मेदारी का तंत्र मजबूत करें। रोजगार, शिक्षा, और नैतिक मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए सामुदायिक स्तर पर योजनाएँ लागू की जाएँ। सभी वक्ताओं ने माना कि आदर्शों को व्यवहारिक योजनाओं से जोड़कर ही समाज में वास्तविक परिवर्तन लाया जा सकता है।
कार्यक्रम की मुख्य अतिथि हम पार्टी की वरिष्ठ नेत्री एवं विधायक ज्योति मांझी ने अपने संबोधन में कहा —
“पटेल जी के आदर्श केवल एक दिन की स्मृति नहीं, बल्कि जीवन का व्यवहार बनना चाहिए। हम सब यह प्रतिज्ञा लें कि उनके सिद्धांतों को नीतियों और जनकल्याण की योजनाओं में स्थान देंगे।”
उन्होंने सभा में उपस्थित सभी लोगों से यह शपथ दिलवाई कि —
“हम सरदार पटेल के एकता, निष्ठा और राष्ट्रप्रेम के सिद्धांतों को अपने जीवन का मार्गदर्शन बनाएँगे।”
कार्यक्रम के अंत में हरि नारायण त्रिपाठी ने धन्यवाद ज्ञापन करते हुए कहा कि यह आयोजन मात्र श्रद्धांजलि नहीं, बल्कि एक राष्ट्रजागरण का संदेश था। उन्होंने कहा —
“भारत की असली ताकत उसकी एकता, अनुशासन और संवेदनशील नेतृत्व में निहित है। आज जब समाज में विभाजनकारी प्रवृत्तियाँ सिर उठा रही हैं, तब पटेल जी के विचारों को व्यवहार में लाना हम सबका कर्तव्य बन जाता है।”
सभा में उपस्थित प्रमुख गणमान्य व्यक्तियों में डॉ. दिनेश सिंह, डॉ. रविंद्र कुमार, सिद्धार्थ कुमार, रूबी देवी, राजीव नयन पांडे, रानी मिश्रा, किरण पाठक, पंडित बालमुकुंद मिश्र, अरुण ओझा, रंजीत पाठक, दीपक सिंह, पवन मिश्रा, अमरनाथ पांडे, डॉ. धर्मेंद्र मिश्र, हरिद्वार पांडे, शोभा देवी, डॉ. ज्ञानेश भारद्वाज, अनुपम मिश्र, मेघा मिश्र, प्रियांशु मिश्र, चंद्र भूषण मिश्र, लकी मिश्र, सुनीता देवी, फूल कुमारी यादव, नीलम पासवान, कविता रावत, विश्वजीत चक्रवर्ती, दीपक पाठक, शंभू गिरी, नीरज वर्मा, सुरेंद्र उपाध्याय, अभय सिंह, सुनील गिरी, अजय मिश्र, सुनील कुमार संकरी, अपराजिता चक्रवर्ती, सत्येंद्र द्विवेदी, अशोक द्विवेदी सहित अनेक लोग शामिल थे।
कार्यक्रम का समापन ‘जय एकता – जय भारत’ के उद्घोष के साथ हुआ। सभा से यह सशक्त संदेश निकला कि
“जब तक भारतवासी अपने अंदर एकता, अनुशासन और कर्तव्यनिष्ठा का दीप जलाए रखेंगे, तब तक भारत विश्व का मार्गदर्शक राष्ट्र बना रहेगा।”
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