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चुनावी सर्कस: बिहार विधानसभा 2025 का महासंग्राम!

चुनावी सर्कस: बिहार विधानसभा 2025 का महासंग्राम!

  • नारों की आग और मतदाता की खामोशी!
सत्येन्द्र कुमार पाठक
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का बिगुल नहीं, बल्कि एक महा-हल्ला बज गया है! चुनावी रणभूमि कम, और नारों का एक भव्य मेला ज्यादा लग रहा है। ऐसा लग रहा है जैसे नेताओं ने तय कर लिया है कि इस बार चुनाव विकास पर नहीं, बल्कि ध्वनि प्रदूषण के बल पर जीता जाएगा। एक तरफ एनडीए के महानुभाव हैं— राष्ट्रीय भाजपा, जदयू, आरएलएसपी, हम, लोजपा— जिनकी जुबान से 'विकसित बिहार', 'राष्ट्रवाद', 'विकासवाद' और 'सनातन संस्कृति' के मंत्र ऐसे निकल रहे हैं, मानो बिहार नहीं, सीधा स्वर्ग लोक बनाने की तैयारी हो! दूसरी तरफ, इंडिया महागठबंधन के धुरंधर हैं— राष्ट्रीय दल में कॉंग्रेस, और क्षेत्रीय दल में राजद, सीपीआई एमएल, सीपीआई, सीपीम— जिनका मुख्य एजेंडा 'तुष्टिकरण' और 'जातिवाद' के नाम पर ध्रुवीकरण करना है। और हाँ, बेचारा जनसुराज भी है, जो इन दोनों दिग्गजों के बीच अपनी 'जन' की 'सुराज' की अलग ही धुन बजा रहा है।
एनडीए के शीर्षस्थ नेता, जिनमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव, और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार शामिल हैं, एक सामूहिक 'विकास-यंत्र' चला रहे हैं। उनके हर भाषण में 'विकास', 'राष्ट्रवाद', 'सबका साथ, सबका विकास' के नारे ऐसे गूंजते हैं, जैसे कोई रिकॉर्ड प्लेयर अटक गया हो। मोदी जी: "भाइयों और बहनों! हमने विकसित बिहार का संकल्प लिया है, और इस बार यह संकल्प... (थोड़ा खांसकर) ... सनातन संस्कृति की रक्षा के साथ पूरा होगा! सबका विश्वास! सबका विकास!"
योगी जी: "बिहार में जंगलराज का अंधेरा फिर नहीं छाएगा! ये राष्ट्रवाद की भूमि है, और यहाँ राष्ट्रविरोधी ताकतों को... (आवाज़ ऊँची करके) ... उखाड़ फेंकेंगे!"नीतीश जी: (शांत, पर दृढ़ स्वर में) "हम तो समाजवाद, विकासवाद और समन्वय में विश्वास रखते हैं। हमारा काम बोलता है।"चिराग पासवान: "बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट! लोजपा (रामविलास) के उम्मीदवार को जिताएं, ताकि बिहार के युवाओं को पलायन न करना पड़े!" जीतन राम मांझी: "हम के उम्मीदवार अनिल कुमार पर हमला करने वालों को सबक सिखाया जाएगा। विकास की राह में हिंसा बर्दाश्त नहीं।"इन नेताओं के नारों की पिच इतनी ऊंची है कि ऐसा लगता है, ये मतदाताओं को आकर्षित नहीं, बल्कि स्तब्ध करने की कोशिश कर रहे हैं। मतदाता सोच रहा है, "भाई, चुनाव विकास का है या किसी राष्ट्रीय बहस का?"
महागठबंधन का तो अपना ही 'रंगमंच' है! यहाँ नेतागण 'तुष्टिकरण', 'जातिवाद', और 'बेरोजगारी' के नारों को ऐसे मिलाते हैं, जैसे कोई विवादों का कॉकटेल बना रहा हो। राहुल गाँधी: कांग्रेस के नेता राहुलगांधी ने तो सीधे 'सनातन संस्कृति' और बिहार का महान पर्व 'छठ मैया' , जमुना मैया पर ही धावा बोल दिया! ऐसा लगता है, उन्हें लगता है कि मतदाता वोट देने से पहले अपनी धार्मिक आस्थाओं पर एक 'जनमत संग्रह' कराएँगे! उनका तुष्टिकरण का नारा इतना तीखा है कि बिहार के गंगा किनारे रहने वाले लोग भी सोच रहे हैं कि क्या करें।
तेजस्वी यादव: राजद के समर्थकों द्वारा सोशल मीडिया पर 'अश्लील वीडियो', 'गट्टे', 'अश्लील जातीय टिप्पणियां' और 'महिलाओं के प्रति अभद्र टिप्पणियां' का शोर मचाया जा रहा है! उनकी टीम का ध्यान मुद्दों पर कम, और सस्ता मनोरंजन प्रदान करने पर ज्यादा है। बेरोजगारी का मुद्दा तो है, लेकिन उसे उठाने का तरीका... ज़रा 'देहाती' है!
मोकामा के उम्मीदवार दुलरचंद यादव की हत्या और हम के उम्मीदवार अनिल कुमार पर जानलेवा हमला बताता है कि बिहार में चुनावी राजनीति अभी भी 'बाहुबल' और 'रक्तपात' के पुराने ढर्रे से बाहर नहीं निकल पाई है। उम्मीदवार ज़मीन पर लड़ रहे हैं, और नेता स्टेज पर चिल्ला रहे हैं।
इन सभी शोर-शराबे, नारों की बौछार, और आरोपों-प्रत्यारोपों के बीच, बिहार की मतदाता चुप और शांत है!
यह चुप्पी सबसे बड़ा व्यंग्य है! मतदाता नेताओं की ऊँची-ऊँची बातें, हवाई वादे, और एक-दूसरे पर कीचड़ उछालने का तमाशा चुपचाप देख रहा है। वह जानता है कि 'विकसित बिहार' और 'रोजगार' के नारे हर बार लगते हैं, लेकिन सड़कें, शिक्षा और स्वास्थ्य की स्थिति वैसी ही रहती है। मतदाता 'राष्ट्रवाद', 'विकासवाद', और 'समाजवाद' के नारों के प्रति कटिबद्ध है, लेकिन शायद नेताओं के 'शब्द-जाल' से थक चुका है। वह जानता है कि:एनडीए का राष्ट्रवाद: क्या यह सिर्फ चुनाव जीतने का हथियार है, या सच में देश के विकास का रास्ता?महागठबंधन का तुष्टिकरण/जातिवाद: क्या यह समाज को एकजुट करेगा या सिर्फ वोटबैंक की राजनीति है? नेता हवा में बातें कर रहे हैं, मतदाता ज़मीन पर खड़े होकर सब सुन रहा है। नेताओं को लगता है कि उन्होंने मतदाताओं को अपने नारों से 'आकर्षित' कर लिया है, जबकि सच्चाई यह है कि मतदाता स्तब्ध है, इस बात से कि ये नेता उन्हें इतना बुद्धिहीन क्यों समझते हैं!14 नवंबर को जब चुनावी मतदान का प्रतिफल आएगा, तब यह पता चलेगा कि क्या बिहार के मतदाता ने नारों की गूंज पर वोट दिया, या अपनी खामोशी से एक ठोस संदेश दिया है! चुनावी सर्कस अभी जारी है, और अंत में, विजेता वह होगा जिसने हवा में कम और ज़मीन पर ज्यादा काम किया होगा... या कम से कम, मतदाता को यह विश्वास दिला दिया होगा!
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