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बरिखा

बरिखा

तू कईसन बाड़ू ए बरिखा ,
तोहर अलगे चले चरीखा ।
हॅंसुआ लगन खुरपी बियाह ,
का तोहर ईहे बाटे तरीका ।।
कईसे होई किसान के खेती ,
चुपे बरखे घटा फाड़े ना नरेटी ।
अईसन बिधना के बा बिधान ,
एही से तोहरा बेटा ना बेटी ।।
घमंड तोहरा भईल बाटे खूबे ,
बईठल बाड़ हाथी के कान्ह प ।
देखलीं चनईल मरद के सगरो ,
केश नईखे एको तोहरा चान प ।।
का खाई लोगवा तूहीं बताव ,
किसान कर ना पाई जब खेती ।
मर जाई भूखे दुनिया के लोगवा ,
प्राकृतिक सृष्टि जाई सब मेटी ।।
तब अईहें श्याम गिरिवरधारी ,
मेट जाई तब ई हाथी के घमंड ।
रक्षा करिहें किसान के ओईसहीं ,
मेट जाई तब इन्द्र के ई पाखंड ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार ।
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