मां जगदंबे के नव रूपों पर,सारा जग बलिहारी
कुमार महेंद्रशारदीय नवरात्र पुनीत बेला,
मां श्री चरण वंदन अभिनंदन ।
स्तुति साधना चरम बिंदु ओर,
कण कण धर्म आस्था मंडन ।
भक्त वत्सल कृपालु मैया,
सदा दुःख कष्ट संकट उभारी ।
मां जगदंबे के नव रूपों पर,सारा जग बलिहारी ।।
प्रथम शैलपुत्री महिमा अतुलित,
शक्ति संयम शौर्य पहचान ।
द्वितीय रूप मां ब्रह्मचारिणी,
उत्संग तप ब्रह्म ज्ञान आह्वान ।
तृतीय वीरता देवी चंद्रघंटा,
रण अंतर सदैव जय जयकारी ।
मां जगदंबे के नव रूपों पर, सारा जग बलिहारी ।।
चतुर्थ ब्रह्मांड जननी कूष्मांडा,
हंसी संग सृष्टि सृजन काज ।
पंचम करुणामयी स्कंदमात,
अंतःकरण पुत्र स्नेह सरताज ।
रग रग ममत्व धार प्रवाह ,
पुत्र कष्ट अति शीघ्र उपचारी।
मां जगदंबे के नव रूपों पर,सारा जग बलिहारी ।।
षष्ठी कात्यायनी न्याय देवी,
धर्म रक्षा हित अग्र कदम ।
सप्तम कालरात्रि कल्याणी,
दूर भय संताप अकाल रिदम ।
ऐश्वर्य सौंदर्य रूपा महागौरी अष्टम,
नवम अष्ट निधि नौ सिद्धि धारी ।
मां जगदंबे के नव रूपों पर,सारा जग बलिहारी ।।
(स्वरचित मौलिक रचना)
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