मान अभिमान के कारण..
मान अभिमान के कारण से,
उजड़ गए न जाने कितने घर।
हँसते खिल खिलाते परिवार,
चढ़ गये देखो इसकी भेंट।
फिर भी न मान मिला,
न ही मिला उन्हें सम्मान।
पर आ गया बहुत अभिमान,
जिसके कारण सब रूठ गये।।
सोच हमारी ऐसी होवे
दु:खे न किसी का दिल।
सबके साथ चला था पहले
अब तू क्यों घमंड कर रहा।
जो भी ख्याति पाई तुमने
श्रेय जाता है घर-परिवार समाज को।
देखकर अपनी वाह वाह को
तू इतना अभिमान कर लिया।।
दिलसे तुम महसूस करो कि
हमें न मान चाहिए न सम्मान।
बस आपस का हमें तो,
प्रेम भाव चाहिए।
मतभेद हो सकते है,
फिर भी साथ चाहिए।
क्योंकि अकेला इंसान,
कुछ नहीं कर सकता।
इसलिए आप सभी का,
हमें भरपूर साथ चाहिए।।
यदि आप सभी आओगें,
एक साथ एक छत के नीचे।
तो ही समाज में चार चाँद,
निश्चित ही लग जायेंगे।
भिन्न भाषाओं और क्षैत्र जाति
होने के बाद भी एक कहलाओगे।
और सच्चे साधर्मी भाई बहिन
समाज में तुम कहलायेंगे।।
छोड़ दे जो तू मान-अभिमान तो
तेरी ये काया बदल जायेगी।
मन प्रसन्न और दिल खिला हुआ
होने से नया स्वरूप दिखे पाओगें।
और तेरी जीवन शैली सच में
तुझ से कुछ नया करवाएगी।
जिसके कारण ही फिर तुझे
ये समाज मान सम्मान दिलायेगी।।
जय जिनेन्द्र
संजय जैन "बीना" मुम्बई
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