"अस्तित्व का बिम्ब"
पंकज शर्माशब्दों के लघु-कोष में,
मैं मौन-अरण्य सा विस्तृत।
अव्यक्त भावों का महासागर,
मौन में ही निहित।
मेरी क्षुद्र चादर,
आच्छादित करे स्वप्न-शिखर।
नियत परिधि में भी,
मैं सृजन का अनंत चक्रधर।
अश्रु-कणों में छिपा,
विह्वल वेदना का व्योम।
प्रत्येक बूँद में अंकित,
जीवन का प्रत्येक सोपान।
मेरे सीमित अस्तित्व में,
अनंतता का प्रतिबिम्ब।
मैं स्वयं में ही सम्पूर्ण,
एक सूक्ष्म-ब्रह्मांड का बिम्ब।
अंतर्द्वंदों के गहन गर्त्त में,
मैं स्वयं से करता वार्तालाप।
अतीत की परछाईं,
वर्तमान का आघात।
मेरी लघुता में निहित,
एक अदम्य शक्ति।
जो भंग कर दे सीमाएँ,
जो करे बाधाओं को भस्म।
मैं हूँ एक प्यासा पथिक,
मृगतृष्णा की राह पर।
प्रत्येक पग में खोजता,
अस्तित्व का सार।
मैं शब्द हूँ,
जो मौन में ही बोलता है।
मैं अर्थ हूँ,
जो सब कुछ खोलता है।
. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित
✍️ "कमल की कलम से"✍️
(शब्दों की अस्मिता का अनुष्ठान)
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