नानी की याद
(मगही कविता)✍️ डॉ रवि शंकर मिश्र "राकेश"
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मिट्टी के चुल्हा, घर भर धुँआ,
ओकरे बेरा के बात हे,
नानी के हाथ से बनल,
लिट्टी में जइसे प्रीत के पात हे।
सरधा से पीढ़ा पर बइठा के,
गुड़-घी से चुपड़ चपाती देत रहली,
खा लs बेटा, पेट भर के खा लs,
तागत होतो, मोटा होब कहते रहली।
धरम करम के हर गाथा,
नानी सुनावत रात-रात भर,
जब बरगद के पेड़ तर खेल हली,
त कह हलथिन ! कोई डराबे त न डर..।
आँच पर सेकल ऊ रोटियाँ,
ना अब ओ स्वाद कहीं रह गेल।
नानी के हँसी में जे अपनापन रहे,
उ सब दुलार सपना हो कि गेल।
बक्सा में राखल वो चिट्ठी,
जे हम भेजले रहली सालों पहिले,
अब नानी ना रहली पढ़े खातिर,
आज भी हे बकसा में बिछले।
अब सपना में आवे नानी,
केस झारत, चोनहा चुआवत,
चोटी गूँथत, पोंछा लगावत,
गोदी में ले के खंढ़ी में घुमाबत।
ई कविता हे सबके नानी के याद आबे के खातिर –
जे अब सिरहाना पर माथा न चूमी,
बस दिल के कोना में हरदम घूमी ।।
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