"बुद्धत्व का रहस्य : आत्मचेतना की स्वयंसिद्ध परिणति"
बुद्धत्व का स्वरूप बाह्य साधनों अथवा परकीय अनुग्रह पर आश्रित न होकर, स्वानुभूति की गहन धारा में निहित है। जब मनुष्य अंतर्मुख होकर अपने ही चित्त की गहन कंदराओं का अवलोकन करता है, तभी आत्मबोध की दिव्य ज्योति प्रज्वलित होती है। यह आलोक किसी गुरु, शास्त्र या संप्रदाय की संकुचित परिधि में सीमित नहीं, वरन् आत्मनिरीक्षण के अखंड अनुशीलन से उत्पन्न एक स्वयंस्फूर्त जागरण है। जैसे कमल कुसुम की पंखुरियाँ सूर्यकिरणों के आलोक में स्वाभाविक रूप से प्रस्फुटित होती हैं, वैसे ही अन्तश्चेतना के विश्लेषण और आत्मविवेचन के परिणामस्वरूप मनुष्य के भीतर निहित बुद्धत्व का संपूर्ण विस्तार प्रकट होता है।
अतः जो साधक मुक्तिपथ का अन्वेषण करना चाहता है, उसे बाहरी आश्रयों पर अधिकाधिक निर्भर रहने के बजाय आत्मबोध की तीव्र साधना करनी चाहिए। निज-अस्तित्व के गूढ़ रहस्यों का अवगाहन करने से ही वह बोधिलक्षणा स्थिति प्राप्त होती है, जहाँ समस्त मोह-आवरण स्वतः नष्ट हो जाते हैं और चेतना का दर्पण निर्मल होकर परमप्रकाश को प्रतिबिंबित करने लगता है। यही वह क्षण है जब साधक यह अनुभव करता है कि बुद्धत्व का आगमन कहीं बाहर से नहीं, बल्कि उसके अपने अंत:करण की असीम गहराइयों से उदित हुआ है—स्वतंत्र, स्वयंसिद्ध और अद्वितीय।
. "सनातन"
(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार)
पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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