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भाषाई सौहार्द का प्रतीक : हिंदी

भाषाई सौहार्द का प्रतीक : हिंदी

दुर्गेश मोहन
हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा लोकप्रिय भाषा के साथ-साथ वर्तमान काल में यह अंतर्राष्ट्रीय भाषा के रूप में उभर कर आयी है ।यह भाषा विश्व की तीसरी सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है ।14 सितंबर, 1949 को इसे संविधान ने राष्ट्रभाषा के रूप में घोषणा तो कर दी लेकिन अफसोस यह है कि यह अभी भी पूर्णरूपेण राष्ट्रभाषा नहीं बन पाई है ।यह जन_ जन की भाषा है ।हिंदी भारत के अतिरिक्त नेपाल, श्रीलंका ,वर्मा ,मॉरीशस, दुबई आदि स्थानों में बोली पर समझी जाती है। हमें हिंदी पर गर्व होनी चाहिए ।यह सरल ,रोचक एवं ज्ञानप्रद भाषा है ।यही कारण है कि यह जन_जन की भाषा है। इस भाषा की विशेषता है कि इसका जो उच्चारण होता है वह उसी तरह लिखी भी जाती है। हिंदी को समृद्ध बनाने वालों में महात्मा गांधी ,डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ,सर्वपल्ली राधाकृष्णन, रवींद्रनाथ टैगोर ,रामधारी सिंह दिनकर ,हरिवंश राय बच्चन, महादेवी वर्मा ,आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी आदि का महत्वपूर्ण योगदान है ।इसलिए इसे हमें संजोकर रखना चाहिए। यह भारतीय का कर्तव्य है ।
इस प्रकार स्पष्ट है कि हिंदी भाषाई सौहार्द में शामिल है। ये दूसरे देशों से जुड़े रहकर भाषा एवं लोक संस्कृति का ज्ञान बांटती है ।हिंदी प्राचीन एवं समृद्ध भाषाओं में एक है। भारत की साहित्य एवं लोक संस्कृति हिंदी द्वारा जीवित है। किसी भी देश को अग्रसर होने में उसकी भाषा की अहम भूमिका होती है। कोई भी देश विकास तभी करता है ,जब उसकी भाषा में ही सरकारी कामकाज हो और इसके अतिरिक्त वह जनता की भाषा हो ।हिंदी की जननी संस्कृत है ।हिंदी में संस्कृत का महत्वपूर्ण योगदान होता है ।एक समय था ,जब लगभग दुनिया के लोग भारत हिंदी और संस्कृत की शिक्षा लेने आते थे। जो हमारे लिए गर्व की बात है ।भारत का साहित्य हो या लोक संस्कृति वह हिंदी के बल पर अग्रसर रहा। देश-विदेश के लोग इसकी संस्कृति को अपनाते हैं। देश-विदेश को एक सूत्र में बांधने का जरिया भाषा होती है।यह हिंदी ही है ।यह अपनी भाषाई सौहार्द के प्रतीक है ।अतः लोग इसे अपनाते हैं ।

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