नेह की पराकाष्ठा,उर्मिला कंपित हृदय प्रदेश में
नयनन अविरल अश्रुधार,
हृदय मणि बिछोह तूफान ।
चेतना शुन्य ओर अग्रसर,
विस्मृत सम निज पहचान ।
राम वनवास संग सिया सोच,
स्मृति पटल लक्ष्मण भावेश में ।
नेह की पराकाष्ठा,उर्मिला कंपित हृदय प्रदेश में ।।
विश्रांति कक्ष गहन सन्नाटा,
दीपक लौ स्नेह स्नेह मंद ।
निशा जागृति स्वप्निल परे,
प्रति आहट प्रिय दर्श उमंग ।
प्रतीक्षा पल वृहत्त स्वरूप,
कल्पना अंतर छवि प्राणेश में ।
नेह की पराकाष्ठा,उर्मिला कंपित हृदय प्रदेश में ।।
अथाह धधक रहा तन मन,
वचन परिध हाव भाव ।
काया विचरण रनिवास,
आत्मा मस्त वन छांव ।
सौंदर्य श्रृंगार अधूरे,
पायल कंगन स्वर क्रंदन वेश में ।
नेह की पराकाष्ठा,उर्मिला कंपित हृदय प्रदेश में।।
प्रतीक्षा अंतर साधना ज्योत,
भर्तार वापसी मंगल कामना ।
अंतःकरण प्रणय निर्झर,
शीघ्र मिलन हित आराधना ।
परिणय व्यंजना असहज छोर,
हर पल वंदन अभिनंदन संजेश में ।
नेह की पराकाष्ठा, उर्मिला कंपित हृदय प्रदेश में ।।
कुमार महेंद्र
(स्वरचित मौलिक रचना)
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