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“जितना बड़ा चोर…”

“जितना बड़ा चोर…”

डॉ रवि शंकर मिश्र "राकेश"

जितना बड़ा चोर, उतनी लम्बी गाड़ी,
पीछे काफिला,आगे गार्ड की फौज सारी।
रात होटल में बैठ पिए ब्रांडी और ताड़ी,
साहब दिखते हैं ऐसे जैसे हो कोई सदाचारी।


जितना बड़ा लुटेरा, उतना ऊँचा मकान,
रिश्ते नाते सब भूले, पैसा ही है भगवान।
नेता जी कहें- मैं हूं सेवक, जनता मेरी माँ है,
जनता भूख से तड़पती पता नहीं नेता कहाँ है?


जितना बड़ा ढोंगी, उतना भारी मोबाइल,
कांख में फाइल, और चेहरा पर स्माइल।
हाथ जोड़ कर कहे, मैं तो सेवक हूँ आपका,
यह क्षेत्र कर्मभूमि रहा है,सिर्फ मेरे बाप का।


जितना बड़ा झूठा, उतनी चिकनी बात,
विरोधियों को सबक सिखाए लगाकर घात।
फिर होता डील, और भाषणों की बरसात,
बाकी के चमचे, जूलूस में दिखते साथ-साथ।


ईमानदार कर्मचारी का होता फाइलों में दफन,
बेईमान लोग लूटते रहते, दोनों हाथ से धन।
सच बोलने वालों का हो जाता नौकरी से छुट्टी,
झूठ बोलो तो मिलती गाड़ी, बंगला और घुंटी।


भ्रष्टाचार अब सिर्फ आदत नहीं, फैशन है,
ईमानदारी तो बस लाचारी का एक्शन है।
जो जितना बड़ा लफंगा, उतना बड़ा नेता,
जो सच्चा है, वो होगा कहीं औंधे मुंह लेटा।


अब तो सच को भी चश्मा पहनाना पड़ेगा,
क्योंकि झूठ से भला कोई जब तक लड़ेगा ?
कुर्सियाँ बिकती हैं, ईमान गिरवी रखे जाते हैं,
जब सच्चाई सामने आती है,सजा जनता से पाते हैं।
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