लाल पत्र पेटी या रेड लेटर बाॅक्स
जय प्रकाश कुवंर
भारत में संचार माध्यम में लाल पत्र पेटी , पत्र भेजने का एक भरोसेमंद माध्यम रहा है। यह लोगों को अपनों से जुड़ने में मदद करता रहा है। बिगत कुछ दिनों से एक समाचार खुब वाइरल हो रहा है कि भारतीय डाक द्वारा 1 सितम्बर २०२५ से लाल लेटर बाॅक्सों को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने पर विचार किया जा रहा है। इस संबंध में सोशल मीडिया पर भी खुब शोर शराबा चल रहा है। इसकी असलियत जानने से पहले आइये हम भारतीय संचार के संसाधनों में पत्र, लेटर चिठ्ठी या खत की अहमियत एवं लाल लेटर बाॅक्स की भूमिका को जानने की कोशिश करते हैं।
भारतवर्ष में टेलीफोन और मोबाईल सेवा आने से पहले पत्र या खत ही एक मात्र ऐसा साधन था जिसके द्वारा एक जगह से दूसरे जगह कोई संबाद पहुँचाया जाता था। वह पत्र चाहे प्रेम पत्र हो अथवा कोई विशेष प्रयोजनीय पत्र हो। पत्र लेखन में एक कोरे कागज पर स्याही से लिखकर अपना संबाद अथवा मन की बात दूसरे तक पहुँचाया जाता था। दूरी ज्यादा नहीं होने पर पत्र हांथों हाथ भी भेजा जाता था। लेकिन दूरी ज्यादा होने पर पत्र डाक द्वारा ही भेजा जाता था। भारत में डाक सेवा सन् १७६४ से
१७६६ के बीच शुरू हूई। इस दरमियान कलकत्ता, चेन्नई और मुंबई में डाकघर स्थापित किये गए। इसके लिए पत्र लिखकर एवं पता लिखकर उसे इस लाल लेटर बाॅक्स में डाल दिया जाता था। तब पत्र लिखने के लिए पोस्ट कार्ड, अंतर्देशीय पत्र एवं लिफाफा का प्रयोग होता था। गोपनीय बातें ज्यादातर लिफाफा में ही भेजी जाती थी। एक बार इस लाल लेटर बाॅक्स में पत्र डाल देने पर यह डाक विभाग की कार्यवाही के अनुसार अपने गंतव्य स्थान एवं व्यक्ति के पास पहुंच जाता था।
पति पत्नी ,प्रेमी प्रेमिका आदि की चिठ्ठियाँ लिफाफा में ही जाती थी, जिससे कि कोई दूसरा उसे न पढ़ सके और उनके मन की बात न जान सके। हम सबने बहुत सारी फिल्म आदि में ऐसे पत्रों का जिक्र देखा सुना है, जैसे :-
१: फूल तुम्हें भेजा है खत में, फूल नहीं मेरा दिल है।
प्रियतम मेरे मुझको लिखना, क्या ये तुम्हारे काबिल है।
२ : खत लिख दे सांवरिया के नाम बाबू,
कोरे कागज पर लिख दे सलाम बाबू।
३ : अंधेरा है कैसे तेरा खत पढ़ूं,
लिफाफे में कुछ रोशनी भेज दे।
इस प्रकार पुराने वर्षों में खत में गोपनीयता वर्ती जाती थी और अपने दिल की बातें कही जाती थी और उसे पहुँचाने का माध्यम था लाल लेकर बाॅक्स।
ये लाल लेकर बाॅक्स ब्रिटिश शासन काल से भारत में मौजूद रहा है। इसका लाल रंग दूर से भी आसानी से दिखाई देता है। भारतवर्ष में यह डाक सेवा के गौरवशाली इतिहास का प्रतीक है। यह डाक विभाग और आम आदमी के बीच एक सेतु का काम करता है। इसमें लोग अपने पत्र को डालते हैं। यह सड़कों, डाक घरों, और चौराहों जैसी सार्वजनिक जगहों पर लगा होता है।
लाल लेटर बाॅक्स के माध्यम से पत्राचार एवं संचार के काफी बाद भारत में सन् १८८१ में टेलीफोन सेवा की शुरुआत हुई। उसी साल कलकत्ता में पहला टेलीफोन एक्सचेंज स्थापित किया गया था। उसके बाद २८ जनवरी, १८८२ को कलकत्ता, मुंबई, मद्रास और कुछ अन्य शहरों में टेलीफोन की औपचारिक सेवा शुरू हुई।
इसके बाद भारत में मोबाईल का इतिहास ३१ जुलाई, १९९५ से शुरू हुआ, जब पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री ज्योति बसु ने तत्कालीन संचार मंत्री सुखराम को पहली मोबाईल काॅल की थी। उसके बाद धीरे धीरे मोबाईल का प्रयोग बढ़ते गया और आज संचार का मुख्य साधन मोबाईल फोन बन गया है। इस मोबाईल फोन के चलते ही कुछ आधे अधूरे समाचार इतना जल्दी वाइरल हो जाता है कि लोग इसे सत्य मानने लगते हैं।
मोबाईल फोन के आने से पत्र लेखन में कुछ कमी आई है। पहले जहाँ ग्रामीण क्षेत्रों में पत्र ही एक मात्र संचार का साधन था। लेकिन अब वहाँ भी मोबाईल से संचार हो रहा है। फिर भी मोबाईल पर मन के दुखदर्द को उस प्रकार नहीं उकेरा जा सकता है जैसे पत्र में लिखकर किया जा सकता है। मोबाईल फोन के आने से भी पत्राचार बंद नहीं हुआ है और वह अभी भी चालू है। मोबाईल पर सुख दुख के ज्यादा स्टीकर भेजे जा रहे हैं, जबकि पत्र दिल का दर्द शब्दों में बयां करता है।
लाल लेटर बाॅक्स की सच्चाई यह है कि भारतीय डाक ने १ सितम्बर, २०२५ से अपनी पंजीकृत डाक सेवा को बंद करने का फैसला किया है, लेकिन लाल लेटर बाॅक्स को बंद नहीं किया गया है। बल्कि इस प्रतिष्ठित लेटर बाॅक्स को डिजिटल निगरानी और क्यूआर कोड के साथ आधुनिक बनाने की योजना है। मुख्य पोस्ट मास्टर जनरल ने कहा है कि लाल लेटर बाॅक्स बने रहेंगे। उनकी पुनः कल्पना की जाएगी और उनकी डिजिटल निगरानी की जाएगी। डाक विभाग यह सुनिश्चित करता है कि लेटर बाॅक्स को हर साल नया रंग दिया जाए और इसे सुलभ स्थानों पर रखा जाए।
भारतवर्ष में वर्तमान में लगभग ३६७००० लाल लेटर बाॅक्स उपयोग में हैं। इसका उपयोग अभी भी आधिकारिक मेल और त्योहारों की शुभकामनाओं के लिए किया जाता है।
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