अब चिट्ठी की बात कहां
✍️ डॉ रवि शंकर मिश्र "राकेश"कभी जो अल्फ़ाज़ स्याही में डूबे होते थे,
अब मैसेज और स्टिकर्स में वो बात कहाँ।
दिल की धड़कन, पढ़ ले जो ख़ामोशी से,
ऐसा कोई अब जज़्बात कहाँ।
तब ‘प्रिय’ से शुरू हो,कई पन्ने भर जाते थे,
अब ‘hi’ से आगे किसी को वक़्त ही नहीं।
ना रुठने की शातिर अदा, ना मनाने का सब्र,
इश्क़ तो है,मगर वो शक्ल ही नहीं।
जिस लिफ़ाफ़े में उम्र भर का वादा होता था,
अब उस वादे की जगह “हाय हैलो” होता है।
कलम की नोक से जो बात लिखा करते थे,
अब वो श्रेय की-बोर्ड को जाता है।
मगर शायद वो मोहब्बत आज भी वैसी ही है,
समय बदला,राहें बदली, पर मंज़िलें तो वही हैं।
बस अब दिल की चिठ्ठी दिल में ही रह जाती है,
न कोई डाकिया,ना वो पुरानी गली है।
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