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नमामी गंगे: एक यात्रा जो दिलों को छू गई

नमामी गंगे: एक यात्रा जो दिलों को छू गई

सत्येन्द्र कुमार पाठक
बिहार, एक ऐसा राज्य जिसकी मिट्टी में इतिहास की खुशबू है और जिसकी नदियों में संस्कृति की धारा बहती है। हाल ही में, 'जीवनधारा नमामी गंगे' संस्था के एक प्रतिनिधिमंडल के रूप में मुझे इस अद्भुत राज्य की यात्रा करने का मौका मिला। यह यात्रा सिर्फ एक सामान्य दौरा नहीं थी, बल्कि यह गंगा और उसकी सहायक नदियों को पुनर्जीवित करने के मिशन से जुड़ी एक भावनात्मक और आध्यात्मिक यात्रा थी। 25 अगस्त से 30 अगस्त तक चली इस यात्रा में, हमने पटना, वैशाली और मुजफ्फरपुर के लोगों, घाटों और ऐतिहासिक धरोहरों , पर्यावरण के साथ एक गहरा संबंध महसूस किया। यह यात्रा एक मिशन थी—गंगा संरक्षण और पर्यावरण जागरूकता के संदेश को जन-जन तक पहुँचाने का मिशन।
पटना में एक नई शुरुआत: राजभवन का अनुभव - हमारी यात्रा की शुरुआत 26 अगस्त को जहानाबाद से हुई। सुबह की ट्रेन से हम पटना पहुँचे, जहाँ हमारा पहला और सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव राजभवन था। सुबह 11:30 बजे हम महामहिम राज्यपाल श्री आरिफ मोहम्मद खान से मिलने पहुँचे। मन में थोड़ी घबराहट थी, लेकिन राज्यपाल की सहजता और गर्मजोशी ने सारी झिझक दूर कर दी। मैंने उन्हें अपनी पुस्तक "मगध क्षेत्र की विरासत" समर्पित की, जिसे उन्होंने बड़े सम्मान के साथ स्वीकार किया। इस मुलाकात के दौरान, हमने पर्यावरण और नमामी गंगे के उद्देश्यों पर विस्तृत चर्चा की। राज्यपाल महोदय ने हमारे प्रयासों की सराहना की और बिहार के विकास को लेकर अपने दूरदर्शी विचार साझा किए। उनकी बातें सुनकर लगा कि विकसित बिहार का सपना सिर्फ एक नारा नहीं, बल्कि एक हकीकत है, जिसे हर कोई जीना चाहता है। राज्यपाल से मुलाकात के बाद, हम उनके अतिथि गृह में जहानाबाद के विधायक श्री सुदय यादव से मिले। उनके साथ हमारी बातचीत में मुख्य रूप से जहानाबाद की दरधा और जमुनी नदियों और अरवल जिले की पुनपुन नदी के संरक्षण और विकास पर जोर दिया गया। यह जानकर खुशी हुई कि स्थानीय जनप्रतिनिधि भी इन नदियों के महत्व को समझते हैं और उनके पुनरुद्धार के लिए उत्सुक हैं। राज्यपाल महोदय के साथ चाय पर हुई बातचीत में विकसित बिहार के सपने पर चर्चा हुई, जिसने हमारे हृदय में एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार किया। हमारे प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व जीवनधारा नमामी गंगे के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. हरि ओम शर्मा कर रहे थे। टीम में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और बिहार राज्याध्यक्ष डॉ. उषाकिरण श्रीवास्तव, दिव्या स्मृति, दिल्ली की अध्यक्षा मोनिका अग्रवाल और ममता शर्मा भी शामिल थीं। वैशाली: गणराज्य और आध्यात्मिकता का केंद्र - 28 अगस्त को, हमने पटना से वैशाली और मुजफ्फरपुर के लिए अपनी यात्रा जारी रखी। पटना से लगभग 20 किलोमीटर दूर स्थित हाजीपुर पहुँचने के बाद हमने सर्किट हाउस में रात्रि विश्राम किया। सुबह, हाजीपुर के गंगा-गंडक संगम पर स्थित कोनारा घाट का दृश्य अद्भुत था। अविरल प्रवाहित जल को देखकर मन को असीम शांति मिली। प्रतिनिधि मंडल के प्रमुख संस्था के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ हरि ओम शर्मा द्वारा नमामी गंगे की विस्तृत चर्चा कर महामहिम राज्यपाल को अवगत कराया गया ।
वैशाली की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक समृद्धि का अनुभव करने के लिए हम बहुत उत्सुक थे। यह वही भूमि है जहाँ दुनिया का पहला गणतंत्र "रिपब्लिक" कायम हुआ था। वैशाली की मिट्टी में ही भगवान महावीर का जन्म हुआ और महात्मा बुद्ध ने यहाँ कई बार आकर उपदेश दिए। लालगंज में, हमारा स्वागत मध्य विद्यालय के छात्रों और शिक्षकों ने किया, जिन्होंने हमें पारंपरिक तरीके से सम्मानित किया। बच्चों की आँखों में भविष्य की चमक देखकर हमारा उत्साह और बढ़ गया। जीवन धारा नमामी गंगे संस्था के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ हरि ओम शर्मा के नेतृव में प्रतिनिधि मंडल की बैठक नगर परिषद सभा कक्ष हाजीपुर में जिला प्रशासन , नगर परिषद के सभापति , कार्यपालक पदाधिकारी और प्रतिनिधि मंडल के साथ हुई । जीवन धारा नमामी गंगे के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ हरि ओम शर्मा ने नमामी गंगे के उद्देश्यों को विस्तार से बैठक में शामिल पदाधिकारी एवं गंगा सेवियों को संबोधित किया । प्रतिनिधि मंडल में शीला वर्मा आदि गंगा सेवी शामिल थे ।
हमने वैशाली में कई महत्वपूर्ण स्थानों का दौरा किया:- अशोक स्तंभ और बौद्ध स्तूप - वैशाली से 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित कोल्हुआ और बखरा गाँव में हुई खुदाई से मिले अवशेषों को देखकर हम विस्मित हो गए। सम्राट अशोक द्वारा निर्मित सिंह स्तंभ लाल बलुआ पत्थर से बना है, जिसकी ऊँचाई 18.3 मीटर है। इस स्तंभ को स्थानीय लोग 'भीमसेन की लाठी' कहते हैं। यहीं पर एक छोटा सा कुंड है जिसे रामकुण्ड कहते हैं, जिसे पुरातत्व विभाग ने मर्कक-हद के रूप में पहचाना है। हमने बौद्ध स्तूपों को भी देखा, जिनका निर्माण बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद उनके अस्थि अवशेषों पर किया गया था। वैशाली के लिच्छवियों को भी बुद्ध के पार्थिव अवशेषों का एक हिस्सा मिला था, और इन स्तूपों का पता 1958 की खुदाई के बाद चला। इन स्थानों ने हमें बौद्ध धर्म के इतिहास और महत्व से गहराई से जोड़ा। अभिषेक पुष्करणी और विश्व शांति स्तूप - वैशाली गणराज्य द्वारा ढाई हजार वर्ष पहले बनवाया गया अभिषेक पुष्करणी सरोवर आज भी अपनी पवित्रता को दर्शाता है। ऐसा माना जाता है कि यहाँ नए शासकों का अभिषेक किया जाता था। इस सरोवर के निकट ही जापान के निप्पोनजी बौद्ध समुदाय द्वारा बनवाया गया विश्व शांति स्तूप है, जो अपनी शांति और भव्यता से मन मोह लेता है। गोल गुंबद और बुद्ध की स्वर्ण प्रतिमाएँ यहाँ आने वालों को शांति का अनुभव कराती हैं।
कुंडलपुर और राजा विशाल का गढ़ - वैशाली से 4 किलोमीटर दूर स्थित कुंडलपुर जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्मस्थान है। इस पवित्र स्थान पर आकर हम अत्यंत भावुक हो गए। हमने राजा विशाल का गढ़ भी देखा, जो एक छोटा टीला है। इसे प्राचीन संसद माना जाता है, जहाँ 7,777 संघीय सदस्य इकट्ठा होकर चर्चा करते थे। यह स्थल भारत में लोकतंत्र की प्राचीन जड़ों का एक जीवंत प्रमाण है। 29 अगस्त को सारण जिले के गंडक और गंगा संगम पर अवस्थित सोनपुर का हरिहर नाथ मंदिर के गर्भगृह में
स्थित बाबा हरिहर नाथ , हनुमान जी का दर्शन , गजग्राह , शनिदेव का दर्शन करने के बाद मौनी बाबा अश्रम में चूड़ा दही का आनंद लिया । 29 अगस्त को मुजफ्फरपुर से कुंडग्राम में महावीर स्वामी जी की जन्मभूमि में अवस्थित महावीर स्वामी मंदिर के गर्भगृह में स्थित भगवान महावीर स्वामी जी का दर्शन किया । मुजफ्फरपुर का दुग्ध निर्माण समिति का स्थलीय का अवलोकन किया परंतु समिति के पदाधिकारियों से मुलाकात नही हुई । रात्रि में मुजफ्फरपुर अतिथि गृह पथनिर्माण विभाग में विश्राम किया । 30 अगस्त को मुजफ्फरपुर में आयोजित सेमिनार में शामिल हुआ ।
मुजफ्फरपुर: सेमिनार और साझा प्रयास - हमारी यात्रा का अंतिम चरण मुजफ्फरपुर था। 29 अगस्त को हम मुजफ्फरपुर पहुँचे और 30 अगस्त को श्री नावयुवक ट्रस्ट समिति के सभागार में एक महत्वपूर्ण सेमिनार में भाग लिया। इस सेमिनार का उद्देश्य गंगा संरक्षण और जागरूकता के लिए साझा प्रयासों पर चर्चा करना था। सेमिनार में मुजफ्फरपुर के अलावा बेगूसराय, सिवान, पश्चिम चंपारण, सीतामढ़ी, पटना, वैशाली, जहानाबाद और दरभंगा जैसे जिलों के गंगा सेवक और जीवनधारा नमामी गंगे संस्था के पदाधिकारी शामिल हुए।सेमिनार में हमने प्राकृतिक कृषि को बढ़ावा देने, गंगा ग्रामों और घाटों पर ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन की स्थिति और अर्थ गंगा योजना के कार्यान्वयन पर चर्चा की। हमें मुजफ्फरपुर में जो सम्मान मिला, वह हमारे प्रयासों को एक नई ऊर्जा देने वाला था। लोगों का उत्साह देखकर लगा कि गंगा को स्वच्छ बनाने का सपना पूरा हो सकता है, बस हमें मिलकर काम करना होगा। हमारी टीम का नेतृत्व डॉ. हरि ओम शर्मा कर रहे थे, और इसमें राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सत्येन्द्र कुमार पाठक, दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष मोनिका अग्रवाल, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ममता शर्मा, डॉ. उषाकिरण श्रीवास्तव और दिव्या स्मृति शामिल थीं। यह यात्रा केवल एक भ्रमण नहीं थी, बल्कि गंगा नदी, उसकी सहायक नदियों और बिहार की समृद्ध विरासत के साथ एक गहरा संबंध स्थापित करने का अवसर था। हमने महसूस किया कि जीवनधारा नमामी गंगे जैसे मिशन को सफल बनाने के लिए सरकारी प्रयासों के साथ-साथ जन-भागीदारी भी अत्यंत आवश्यक है। वैशाली और मुजफ्फरपुर में लोगों का उत्साह और सहयोग देखकर यह विश्वास और मजबूत हो गया कि हम सभी मिलकर गंगा को उसकी पुरानी महिमा लौटा सकते हैं। इस यात्रा ने हमें न केवल नदियों और पर्यावरण के प्रति हमारी जिम्मेदारी का एहसास कराया, बल्कि यह भी दिखाया कि भारत की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक जड़ें कितनी गहरी और समृद्ध हैं। यह यात्रा एक शिक्षा थी, एक प्रेरणा थी और एक ऐसा अनुभव था जो हमारे हृदय में हमेशा रहेगा।
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