Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

नशा विपरीत शान

नशा विपरीत शान

तेरे श्वसा में ही नशा है ,
या नशा में ही श्वसा है ।
नशा विपरीत ये शान है ,
नशा रग रग में बसा है ।।
क्या तुम्हीं हो नशा के ,
या नशा ही तुम्हारी है ?
कितने सड़ गए किडनी ,
क्या तुम्हारी ही बारी है ?
नशा करना ही जरूरी है ,
कर अधिक जीने की ।
जीवन पे अधिकार कहाॅं ,
लत लगाए हो पीने की ।।
भारत में तुम जन्म लिए ,
भारत हेतु तुम जन्मे हो ।
त्यागे भारतीय सभ्यता ,
क्या इसीलिए जन्मे हो ?
तेरा जीवन तेरे हेतु नहीं ,
परिवार समाज राष्ट्र की ।
नशे में तुम सूर बने हो ,
औलाद बने धृतराष्ट्र की ।।
नशा करना शान नहीं है ,
शान होता नशामुक्ति में ।
पूच्छविहीन पशु हुए हो ,
खोकर तो देख सूक्ति में ।।
नशामुक्त हो तेरा जीवन ,
नशामुक्त होगा ये भारत ।
भारत तुमपे वारा निजको ,
क्यों न तू निज को वारत ।।
नशा में तू भक्ति अपना ले ,
भक्ति से मिलेगी ये शक्ति ।
ईशभक्ति या राष्ट्रभक्ति कर ,
उस नशे से हो तेरा विरक्ति ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार ।
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews #Divya Rashmi News, #दिव्य रश्मि न्यूज़ https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ