ललितपुर: बुंदेलखंड का हृदय और इतिहास का संगम(ललितपुर परिभ्रमण 20 सितंबर से 21 सितंबर 22025)
सत्येन्द्र कुमार पाठक
16वीं शताब्दी की शुरुआत में, बुंदेला शासकों, गोबिंद बुंदेला और रुद्र प्रताप, ने इस क्षेत्र को गोंडों से छीन लिया। 17वीं शताब्दी में, ललितपुर चंदेरी राज्य का हिस्सा बन गया, जिसकी स्थापना ओरछा के रुद्र प्रताप सिंह के वंशज एक बुंदेला राजपूत ने की थी। चंदेरी राज्य अपने मजबूत किलों, मंदिरों और कलात्मक विरासत के लिए प्रसिद्ध था।
18वीं शताब्दी में, बुंदेलखंड के अधिकांश हिस्सों के साथ चंदेरी भी मराठा साम्राज्य के प्रभाव में आ गया। इस क्षेत्र में मराठाओं की उपस्थिति ने यहाँ की संस्कृति और प्रशासन पर गहरा प्रभाव डाला। 1811 में, ग्वालियर के शासक दौलत राव सिंधिया ने चंदेरी पर कब्ज़ा कर लिया, जिससे यह क्षेत्र मराठा-सिंधिया अधिपत्य में आ गया।
1844 में, चंदेरी राज्य को अंग्रेजों को सौंप दिया गया, और यह ब्रिटिश भारत का चंदेरी जिला बन गया। ललितपुर शहर इस जिले का मुख्यालय था। 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में, ललितपुर ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यहाँ के बुंदेला राजा मर्दन सिंह बुंदेला ने अंग्रेजों के खिलाफ हथियार उठाने वाले प्रमुख व्यक्तियों में से एक थे। इस विद्रोह के दौरान अंग्रेजों को यह जिला खोना पड़ा, लेकिन 1858 के अंत तक उन्होंने इसे पुनः अपने नियंत्रण में ले लिया।
1861 में, अंग्रेजों ने बेतवा के पश्चिम के हिस्से को ग्वालियर को वापस कर दिया और शेष का नाम बदलकर ललितपुर जिला कर दिया। इसके बाद, 1891 से 1974 तक, ललितपुर को झाँसी जिले का हिस्सा बना दिया गया। 1974 में, यह अपनी पहचान को पुनः प्राप्त करते हुए एक स्वतंत्र जिले के रूप में स्थापित हुआ, जिसका प्रशासनिक मुख्यालय ललितपुर शहर बना। ललितपुर के नाम की उत्पत्ति के संबंध में नाम महाराजा सुमेर सिंह की पत्नी ललिता देवी के नाम पर पड़ा। दक्कन के राजा सुमेर सिंह ने अपनी पत्नी ललिता के नाम पर इसका नामकरण किया। यह भी माना जाता है कि महाराज सुमेर सिंह को एक तालाब में स्नान करने से चर्मरोग से मुक्ति मिली थी, और उसी तालाब का नाम सुमेरा तालाब पड़ गया, जो आज भी जिले में मौजूद है।
ललितपुर को अक्सर 'जैनियों का गढ़' कहा जाता है, क्योंकि यहाँ कई प्राचीन और महत्वपूर्ण जैन तीर्थस्थल हैं। लेकिन यह जिला केवल जैन धर्म ही नहीं, बल्कि हिंदू धर्म के कई ऐतिहासिक मंदिरों का भी केंद्र है। देवगढ़ का दशावतार मंदिर: यह मंदिर गुप्त काल की वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है और इसे भारत के सबसे पुराने और सबसे प्रसिद्ध विष्णु मंदिरों में से एक माना जाता है। मंदिर की दीवारों पर बनी पौराणिक कथाओं और मूर्तियों की नक्काशी अद्भुत है। पावागिरी: यह जैन धर्म का एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है, जो अपनी शांति और आध्यात्मिक वातावरण के लिए जाना जाता है। यहाँ कई दिगंबर जैन मंदिर हैं, जो भक्तों को आकर्षित करते हैं।नीलकंठेश्वर मंदिर (पाली): यह एक प्राचीन शिव मंदिर है जो अपनी स्थापत्य कला और प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है। यह मंदिर एक पहाड़ी पर स्थित है और इसके आसपास का दृश्य मनोरम है। हिंदू मंदिर: जिले में कई अन्य प्रसिद्ध हिंदू मंदिर भी हैं, जैसे रघुनाथजी (बड़ा मंदिर), काली बौआ जी मंदिर, शिवालय, बूढ़े बब्बा (हनुमानजी), और तुवन मंदिर। ये मंदिर स्थानीय लोगों की आस्था का केंद्र हैं।जैन मंदिर: जैन समुदाय के लिए यहाँ कई महत्वपूर्ण मंदिर हैं, जैसे बड़ा मंदिर, अटा मंदिर, और क्षेत्रपालजी मंदिर, जो जैन कला और संस्कृति का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन धार्मिक स्थलों के अलावा, ललितपुर में सीरोंजी, देवमाता, बंट के पास चव्हाण, और मचकुंड की गुफाएं भी हैं, जो यहाँ के ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व को दर्शाती हैं। लललितपुर में क्षेत्रपाल जैन मंदिर , जैन गुफा में दिगंबर केवम श्वेताम्बर मंदिर केवम जैन 24 तीर्थंकर की भव्य मूर्ति है ।
ललितपुर का कुल क्षेत्रफल 5,039 वर्ग किलोमीटर है। 2011 की जनगणना के अनुसार, इसकी कुल आबादी 1,221,592 थी, जिसमें 977,447 लोग ललितपुर के मुख्य शहर और प्रशासनिक मुख्यालय में रहते हैं। प्रशासनिक रूप से, यह जिला पाँच तहसीलों, ललितपुर, महरौनी, तालबेहट, मड़ावरा, और पाली में विभाजित है। यहाँ चार प्रमुख कस्बे हैं: ललितपुर, महरौनी, तालबेहट और पाली। जिले में कुल 754 गाँव हैं। हिंदी और बुंदेली यहाँ की प्रमुख भाषाएँ हैं। बुंदेली का प्रयोग यहाँ के स्थानीय लोगों द्वारा व्यापक रूप से किया जाता है, जो इस क्षेत्र की सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा है। ललितपुर की राजनीति में ललितपुर और महरौनी की विधानसभा सीटें प्रमुख हैं। यह जिला झाँसी लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है। ललितपुर की कनेक्टिविटी मुख्य रूप से रेलवे और सड़क मार्गों पर निर्भर करती है। ललितपुर जंक्शन रेलवे स्टेशन भारत की प्रमुख रेलवे लाइनों के अंतर्गत आता है और यह देश के सभी हिस्सों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। जिले की अर्थव्यवस्था कृषि और खनिज-उत्पादन पर आधारित है। यहाँ की मिट्टी उपजाऊ है, और नदियों से सिंचाई की सुविधा उपलब्ध है। इसके अलावा, यहाँ पाए जाने वाले खनिज, जैसे ग्रेनाइट और पायरोफलाइट, औद्योगिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ललितपुर जिला और उसके आसपास का क्षेत्र एक अलग बुंदेलखंड राज्य बनाने के लिए चल रहे अलगाववादी आंदोलन का सामना कर रहा है। इस आंदोलन का उद्देश्य इस क्षेत्र की आर्थिक, सामाजिक, और सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखना है, जो इसे दक्षिणी उत्तर प्रदेश और उत्तरी मध्य प्रदेश के अन्य हिस्सों से अलग करता है। भले ही यह आंदोलन एक चुनौती है, लेकिन यह इस क्षेत्र के लोगों की आकांक्षाओं और पहचान का भी प्रतीक है। ललितपुर का भविष्य यहाँ के प्राकृतिक संसाधनों का सही उपयोग करने, पर्यटन को बढ़ावा देने और शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में सुधार करने पर निर्भर करता है। ललितपुर केवल एक जिला नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और प्राकृतिक खजाना है। यह बुंदेलखंड की उस पहचान का प्रतीक है, जो अपनी जड़ों से जुड़ी हुई है और निरंतर प्रगति की राह पर है।
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