ऑनर किलिंग : परिस्थिति, मनोविज्ञान और सामाजिक बहस
✍️ रमेश कुमार चौबे, महासचिव – नागरिक अधिकार मंच
ऑनर किलिंग यानी “इज्जत की रक्षा के लिए हत्या” — यह शब्द सुनते ही मन में मिश्रित भावनाएं उठती हैं। समाज में इसे लेकर धारणा अत्यंत विभाजित है। कुछ लोग इसे अमानवीय, क्रूर और अस्वीकार्य अपराध मानते हैं, जबकि कुछ इसे परिस्थिति-जन्य प्रतिक्रिया के रूप में देखते हैं, जहां व्यक्ति अपने सम्मान और परिवार की इज्जत की रक्षा के लिए यह कदम उठाता है। मेरा स्पष्ट मत है कि ऑनर किलिंग को सामान्य हत्या की श्रेणी में रखना न्याय के साथ अन्याय है। यह क्रिया, प्रतिक्रिया का परिणाम है, न कि पूर्व नियोजित अपराध।
1. ऑनर किलिंग: अपराध या प्रतिक्रिया?
जब किसी व्यक्ति की इज्जत को चोट पहुंचती है, या उसके कुल-परिवार पर कलंक लगता है, तब उसकी मानसिक स्थिति असहनीय हो जाती है। ऐसे क्षणों में, वह व्यक्ति क्रोध, पीड़ा और भावावेश में ऐसा कदम उठा लेता है जिसे कानून “हत्या” कहता है, लेकिन वस्तुतः यह परिस्थिति-जन्य हत्या है। यह उसी प्रकार है जैसे कोई अपनी रक्षा में हथियार उठाए और आक्रमणकारी का अंत कर दे। यह इज्जत और सम्मान की रक्षा का कदम है, जो पूरी तरह से ‘सेल्फ डिफेन्स’ की मानसिकता से जुड़ा है।
2. प्रेम, आकर्षण और आधुनिकता का भ्रम
मानव सहित सभी जीव-जंतु रतिक्रिया के चरम सुख के लिए एक-दूसरे के प्रति आकर्षित होते हैं। इसे आज के दौर में “लव” या “प्यार” का नाम दे दिया गया है, लेकिन सच यह है कि अधिकांश मामलों में यह आकर्षण हवस के रास्ते से शुरू होता है। हवस की तृप्ति के लिए मानसिक विकलांगता का दौर प्रारंभ होता है, और वहीं से आधुनिकता के नाम पर लव की बीमारी जन्म लेती है। ऐसे ही विकृत रिश्ते अक्सर परिवार और समाज के सम्मान को आघात पहुँचाते हैं।
3. ऐतिहासिक और धार्मिक परिप्रेक्ष्य
वैदिक काल से लेकर आज तक, ऐसे प्रसंग देखने को मिलते हैं जब कुल की इज्जत दागदार करने वाले पर कठोरतम कार्रवाई हुई। हमारे धर्मग्रंथों में भी ऐसे उदाहरण हैं जहाँ देवताओं द्वारा किए गए कर्म भी परिस्थिति की मजबूरी थे। मुगल काल में भूमि के क्रय-विक्रय दस्तावेज़ में जाति का उल्लेख अनिवार्य था। आज़ादी के बाद भी जाति एक सामाजिक सच्चाई है—यह मृत्यु प्रमाण पत्र से लेकर सभी सरकारी दस्तावेज़ों में विद्यमान है।
4. मानसिकता और कानून का टकराव
कानून और संविधान मानव निर्मित हैं, जबकि समाज का मूल आधार प्राकृतिक सिद्धांत है। जब प्राकृतिक नियम और कृत्रिम कानून में टकराव होता है, तो कई बार कृत्रिम कानून समाज के वास्तविक मनोविज्ञान को समझने में विफल रहते हैं। ऑनर किलिंग के मामले में, न्यायालय को केवल घटना नहीं बल्कि उस व्यक्ति की मानसिक अवस्था, सामाजिक दबाव और पारिवारिक सम्मान की स्थिति को भी ध्यान में रखना चाहिए।
5. परिस्थिति-जन्य हत्या और दंड का प्रश्न
यदि कोई व्यक्ति सामान्य मानसिक अवस्था में, सोच-समझकर हत्या करता है, तो वह निस्संदेह अपराधी है। लेकिन यदि कोई व्यक्ति असहनीय अपमान, कलंक और सामाजिक तिरस्कार के भय से, भावावेश में ऐसा करता है, तो उसे कठोर दंड देना न्यायसंगत नहीं। ऐसे मामलों में मृत्युदंड या आजीवन कारावास अन्यायपूर्ण है। कानून में संशोधन कर ऑनर किलिंग के मामलों को अलग श्रेणी में रखा जाना चाहिए, और दंड निर्धारण में लचीलापन होना चाहिए।
6. सम्मान की रक्षा: प्रकृति और उदाहरण
एक कुम्हार यदि बर्तन खराब बन जाए, तो उसे नष्ट कर देता है।
एक किसान यदि खीरा खराब हो जाए, तो उसे उखाड़कर फेंक देता है।
चिकित्सा विज्ञान में, यदि भ्रूण में गंभीर विकृति हो, तो उसे समाप्त कर दिया जाता है।
तो क्या सामाजिक विकृति और कुल-परिवार पर कलंक लगाने वाली मानसिकता के ‘डिस्पोज़ल’ को पूरी तरह नाजायज ठहराया जा सकता है?
7. पिता और परिवार के अरमान
पिता से अधिक संतान का भला कोई नहीं सोच सकता। वह जीवनभर अपने बच्चों के भविष्य के लिए त्याग करता है। लेकिन यदि संतान अपने पिता के अरमानों को रौंद दे, कुल की इज्जत को दागदार कर दे, तो यह पीढ़ियों से अर्जित मान-सम्मान को मिटा देता है। इज्जत बनाने में पीढ़ियां लगती हैं, लेकिन उसे डुबोने के लिए एक पल का गलत कदम काफी है। ऐसे में, व्यथित मन से की गई कार्रवाई को केवल अपराध की दृष्टि से देखना अन्याय है।
8. व्यापक बहस की आवश्यकता
ऑनर किलिंग पर केवल भावनात्मक या कानूनी दृष्टिकोण से निर्णय लेना पर्याप्त नहीं। यह एक गहन सामाजिक, सांस्कृतिक और मनोवैज्ञानिक मुद्दा है।
कौन लोग ऑनर किलिंग का विरोध करते हैं?
उनकी जाति, धर्म और मानसिकता क्या है?
क्या वे परिस्थिति-जन्य अपराध और योजनाबद्ध हत्या में अंतर करते हैं?
इन प्रश्नों पर खुले मंच पर बहस होनी चाहिए, ताकि समाज और कानून के बीच संतुलन स्थापित किया जा सके।
9. भारतीय दंड संहिता (IPC) में प्रासंगिक धाराएं
ऑनर किलिंग के लिए भारत में कोई अलग धारा नहीं है, लेकिन ऐसे मामलों में आमतौर पर निम्न धाराएं लागू होती हैं –
IPC धारा 299-304 – हत्या और गैर-इरादतन हत्या की परिभाषा व दंड।
IPC धारा 302 – हत्या के लिए मृत्युदंड या आजीवन कारावास।
IPC धारा 307 – हत्या का प्रयास।
IPC धारा 34 और 120B – सामूहिक साजिश और समान उद्देश्य से अपराध।
समस्या – इन धाराओं में “मानसिक उत्तेजना, भावावेश और असहनीय उकसावे” को पर्याप्त महत्व नहीं दिया गया है, जबकि IPC की धारा 300 Exception 1 में “ग्रेव एंड सडन प्रोवोकेशन” (गंभीर और अचानक उकसावे) को हत्या से अलग मानने का प्रावधान है।
ऑनर किलिंग के मामलों में अक्सर यही परिस्थिति होती है।
10. सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के महत्वपूर्ण निर्णय
लता सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2006)
कोर्ट ने कहा कि बालिग व्यक्ति को अपनी मर्जी से विवाह करने का संवैधानिक अधिकार है।
ऑनर किलिंग की कड़ी निंदा की गई और इसे “गंभीर अपराध” माना गया।
शक्ति वहिनी बनाम भारत सरकार (2018)
कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश दिया कि ऑनर किलिंग रोकने के लिए विशेष टास्क फोर्स बनाई जाए।
‘खाप पंचायतों’ को ऐसे अपराधों के लिए जिम्मेदार ठहराया गया।
भगवानी बनाम हरियाणा राज्य (2013)
हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि ऑनर किलिंग “हत्या” है, लेकिन यदि यह भावावेश में हुई है, तो सजा तय करने में नरमी बरती जा सकती है।
➡ संदेश – अदालतें सिद्धांततः इसे अपराध मानती हैं, लेकिन भावावेश और परिस्थिति का मूल्यांकन कर सजा में अंतर कर सकती हैं। यही वह बिंदु है जहां कानून में संशोधन की आवश्यकता है।
11. अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण
जॉर्डन और पाकिस्तान – पहले ऑनर किलिंग के लिए नरमी थी, लेकिन अब सख्त दंड।
तुर्की – ऑनर किलिंग को आजीवन कारावास से दंडित किया जाता है।
संयुक्त राष्ट्र (UN) – इसे मानवाधिकार उल्लंघन और लैंगिक हिंसा की श्रेणी में रखता है।
➡ भारत में अंतरराष्ट्रीय मानकों के साथ-साथ सामाजिक मनोविज्ञान का भी संतुलन जरूरी है।
12. मनोवैज्ञानिक पहलू
ऑनर किलिंग के पीछे एक खास मानसिक अवस्था होती है:
गंभीर अपमान और कलंक का भय
सामाजिक बहिष्कार का डर
परिवार की पीढ़ियों से कमाई गई प्रतिष्ठा के नष्ट होने की आशंका
इसे Post Traumatic Emotional Reaction कहा जा सकता है, जिसमें व्यक्ति तार्किक सोचने की क्षमता खो बैठता है और प्रतिक्रिया स्वरूप कठोर कदम उठा लेता है।
13. कानून में सुधार की आवश्यकता
अलग श्रेणी – ऑनर किलिंग को सामान्य हत्या से अलग श्रेणी में रखा जाए।
मानसिक अवस्था का परीक्षण – न्यायिक प्रक्रिया में मनोवैज्ञानिक रिपोर्ट अनिवार्य हो।
सजा में लचीलापन – मृत्युदंड या आजीवन कारावास के बजाय परिस्थिति-जन्य दंड।
परिवारिक विवाद समाधान बोर्ड – विवाह और रिश्तों से जुड़े विवादों के लिए त्वरित मध्यस्थता।
मैं स्पष्ट रूप से मानता हूँ कि ऑनर किलिंग को पूरी तरह अपराध की श्रेणी में रखना गलत है। यह सामान्य हत्या नहीं, बल्कि परिस्थिति-जन्य सम्मान रक्षा हत्या है। इसे समझने के लिए कानून को संशोधित करना होगा, और न्याय प्रक्रिया में मनोवैज्ञानिक पहलू को प्रमुखता देनी होगी।
समाज की इज्जत और कुल-परिवार का मान-सम्मान केवल शब्द नहीं, बल्कि पीढ़ियों के संस्कार और त्याग का परिणाम है। इसकी रक्षा करना केवल अधिकार नहीं, बल्कि कर्तव्य भी है।
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