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हम बानी रोज के

हम बानी रोज के

हम त बानी रोज के रोटी भात ,
रउआ कहीयो ला पकवान बानी ।
पड़ल रहीला इंतजार में हमहूॅं ,
एह घर के रउआ मेहमान बानी ।।
ना रह पाईब रोज रउआ कहियो ,
ना धरी कवनों रोग हमरा कबहूॅं ।
चाहे नून रोटी खाके हम जियब ,
गरीबीयो में रहब निरोग तबहूॅं ।।
हमार बतिया खराब मत मानब ,
रउए त हमर स्वाभिमान बानी ।
हम त बानी रोज के भात रोटी ,
रउआ कबहूॅं ला पकवान बानी ।।
हम बानी एगो मजदूर खेतिहर ,
खेते में हम कमाईले खाईले ।
का बताईं हम जीवन आपन ,
नून सतुआ हम खाके बिताईले ।।
हमरा सुख ला करिले कामना ,
रउए कृपा सिन्धु भगवान बानी ।
हम त रोज के बानी रोटी भात ,
रउआ कबहूॅं ला पकवान बानी ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार ।
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