हम बानी रोज के
हम त बानी रोज के रोटी भात ,रउआ कहीयो ला पकवान बानी ।
पड़ल रहीला इंतजार में हमहूॅं ,
एह घर के रउआ मेहमान बानी ।।
ना रह पाईब रोज रउआ कहियो ,
ना धरी कवनों रोग हमरा कबहूॅं ।
चाहे नून रोटी खाके हम जियब ,
गरीबीयो में रहब निरोग तबहूॅं ।।
हमार बतिया खराब मत मानब ,
रउए त हमर स्वाभिमान बानी ।
हम त बानी रोज के भात रोटी ,
रउआ कबहूॅं ला पकवान बानी ।।
हम बानी एगो मजदूर खेतिहर ,
खेते में हम कमाईले खाईले ।
का बताईं हम जीवन आपन ,
नून सतुआ हम खाके बिताईले ।।
हमरा सुख ला करिले कामना ,
रउए कृपा सिन्धु भगवान बानी ।
हम त रोज के बानी रोटी भात ,
रउआ कबहूॅं ला पकवान बानी ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार ।
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews #Divya Rashmi News, #दिव्य रश्मि न्यूज़ https://www.facebook.com/divyarashmimag
0 टिप्पणियाँ
दिव्य रश्मि की खबरों को प्राप्त करने के लिए हमारे खबरों को लाइक ओर पोर्टल को सब्सक्राइब करना ना भूले| दिव्य रश्मि समाचार यूट्यूब पर हमारे चैनल Divya Rashmi News को लाईक करें |
खबरों के लिए एवं जुड़ने के लिए सम्पर्क करें contact@divyarashmi.com