बुढ़वा बैल
जय प्रकाश कुवंरना तो बैलगाड़ी ना,
अब हर हेंगा घिंचात बा।
खूंटा बांधल बुढ़वा बैल,
बइठल बइठल खात बा।।
दुधारू गाय भले उपास रहे,
इनका घास भूसा चाहीं।
बिना फायदा खियावे खातिर,
हम कहाँ से उगाहीं।।
कतनो बेलाव इ,
कबो दुआर छोड़त नइखन।
आधा पेट खाके भी,
इ जल्दी से मरत नइखन।।
फाटक में बेलावला पर,
इ भाग आवत बाड़े।
चौबीस घंटा इनके देखे खातिर,
के रहे दुअरा खाड़े।।
जबले जोतइले, तबले
खेत खलिहान सब आबाद भइल।
खूंटा बांधल खियावे में, लागता
इ घर अब बरबाद भइल।।
दूनियां समाज भले,
घर वाला लोग के देत रहे गारी।
बुढ़वा बैल के बेलावे खातिर,
अब घर घर बा तैयारी।।
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