दिखावा ( नकल )
जय प्रकाश कुवंरराह चलते चलते,
कितना आगे निकल गये हम।
अपनी विरासत को त्याग,
दिखावे में ढल गये हम।।
पगडंडियों पर चलना ,
अपना जूनून था।
उस रास्ते पर चलने में ही,
हमें मिलता सुकून था।।
हमने रफ्तार के लिए,
पक्का रोड बनवाया।
अपनी पगडंडियों को हमने,
उसके नीचे छुपाया।।
अपना रास्ता बदला,
फिर अपना घर बदला ।
अपना खान पान बदला,
फिर अपना पहनावा बदला।।
हम दूसरों का नकल करते गए,
अपनी विरासत को बदलते गए।
एक समय ऐसा आ गया,
जब हम न हुए विदेशी,
नहीं वो असल भारतीय रह पाये।।
इस बदलने के होड़ में,
हमने अपना सब कुछ बदल डाला।
जो नहीं बदल पाये हम, वो
यह है कि हम हैं भारत वाला।।
भारतीय समाज में,
भारतीयता ही हमारी पहचान है।
अपनी भारतीय संस्कृति को,
बनाये रखने में ही हमारी शान है।।
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