"ज्ञान : बोझ नहीं, जीवन का आलोक"
मानव-जीवन का परम निधि ज्ञान है, तथापि वही ज्ञान यदि मनुष्य के हृदय-प्रदेश को भारी कर दे, निष्कलुषता का हरण कर ले, अहंकार का पोषण करे एवं जीवन में सहजता का संचार न करे, तो वह वरदान न होकर अभिशापसदृश बोझ बन जाता है। वास्तविक ज्ञान वह है जो व्यक्ति के अंतःकरण में विनय, सरलता एवं सौम्यता का संवर्धन करे तथा उसके अस्तित्व में प्रसन्नता का दैदीप्य भर दे।केवल पुस्तकों का संचय, उपाधियों का संग्रह अथवा तथ्यों का अकूत भंडार ज्ञान नहीं, अपितु मात्र सूचना-समूह है। ज्ञान की सार्थकता तभी है जब वह आचरण की धारा में प्रवाहित होकर व्यवहार, संबंध एवं जीवन-व्यवस्था को सुशोभित करे। यदि ज्ञान का परिणति अहंभाव, विशेषत्व-ग्रंथि अथवा आत्ममुग्धता में हो, तो वह विकास का पथ प्रशस्त नहीं करता, प्रत्युत आत्म-पतन का द्वार खोल देता है।
ज्ञान का परम प्रयोजन है—मनुष्य को आंतरिक बंधनों से विमुक्त करना, जीवन-भार को हल्का करना तथा संघर्षों का सामना हर्षपूर्ण साहस से कराना। यथार्थ ज्ञान वही है जो मनुष्य को विनम्रता में प्रतिष्ठित करे, सहृदयता का संचार करे एवं परदुःख-कातरता की संवेदना उत्पन्न करे।
अतः स्मरणीय है कि ज्ञान का वास्तविक मूल्य तभी ही है, जब वह हमारी आत्मा को आलोकित कर जीवन को सरलता, शांति एवं प्रसन्नता से अभिषिक्त करे। अन्यथा वह केवल बोझरूप भार बनकर आत्मविकास के मार्ग में अवरोध खड़ा करता है।
. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित
✍️ "कमल की कलम से"✍️
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