विश्वास की ईंट
रचनाकार:--डॉ रवि शंकर मिश्र "राकेश"
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विश्वास से रचते हैं रिश्ते,
तब नेह की छाया पाते हैं,
जहाँ न हो संदेह का साया,
वहाँ प्रेम का पुष्प खिलाते।
हर बात को ना तोलो केवल,
अपनी दृष्टि की तराज़ू में,
दूसरों के मन में भी उतरो
खुशियां बिखरेंगी बाज़ू में।
संदेह, बड़ा ध्वंस कर दे,
फिर कुछ बोल न पाते,
जहाँ भरोसा टूट गया हो,
वहाँ पल भी साल बन जाते।
संबंध तो बस बन जाते हैं,
क्षणिक किसी संयोग से,
निभाना उनको जीवन भर
अपनी साधना के प्रयोग से।
दूसरों की चुपचाप सुनो,
कभी आँख से बात कहो,
विश्वास की ईंट लगाकर,
संबंधों का फिर बोझ सहो।
रिश्ते बस नाम नहीं होते,
ये तो धड़कन हैं जीवन की,
जिसमें हो सच्चाई गहरी,
और आस्था हो मन की।
तो चलो बनाएं हम भी
ऐसे रिश्तों की एक रेक,
जहाँ ईंट हो विश्वास की,
प्रेम की सीढ़ियां अनेक।
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