प्यार का आनंद
देखो देखो मन कैसे उछल रहा है।उम्मीदों का आसमान झूम उठा है।
चाँद सितारे आकाश में चमक उठे है।
देखकर दृश्य मौसम भी मचल उठा है।।
कुछ उनकी और हमारी मजबूरी है।
जैसे पृथ्वी और आकाश की दूरी है।
बरसता है जब भी आकाश से पानी।
तो धरा भीगकर खिल उठती है।।
जिंदगी की गाड़ी दौड़े जा रही है।
मन की उम्मीदें बहुत लहरा रही है।
दूर होकर भी मंजिल पास आ रही है।
सच मानों तो नई सुबह होने जा रही है।।
हरी हरी घास कालीन जैसी बिछी है।
जिस पर देखो चांदनी बिखरी पड़ी है।
सच मानो आज जन्नत दिख रही है।
इसलिए तो मोहब्बत उछल रही है।।
मौसम अगर खुश मिजाज हो तो।
ये दिल सच में ढोल उठता है।
साँसे गर्म होकर आहे भरती है।
और मेहबूब से लिपट जाती है।।
जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना" मुंबई
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