"स्वतंत्रता के उन्यासी वर्ष"
उन्यासी प्रभातें, गौरव की शान,सागर से लेकर हिम की जान,
हम हैं उस स्वप्न के उत्तराधिकारी,
जो जीता गया बलिदानों से भारी।
जो तिरंगा नभ में लहराए,
वो केवल कपड़ा नहीं कहलाए,
केसरिया त्याग का रंग सुनाए,
श्वेत शांति का दीप जलाए।
हरित हमें जीवन का संदेश दे,
प्रकृति, प्रगति का परिवेश दे।
स्वतंत्रता केवल उल्लास नहीं,
यह प्रतिज्ञा है—हर वर्ष सही,
सीमा की रक्षा अडिग रहकर,
अन्याय मिटाएँ दृढ़ता धरकर।
हमारे चिन्ह—अशोक का सिंह,
सत्य, न्याय के दृढ़ अभिमुख पंख,
राष्ट्रगान की मधुर पुकार,
हमको दे सेवा का आधार।
उत्सव हो केवल जयघोष नहीं,
ये कर्तव्य-दीपक बुझने न कहीं,
एकता, सजगता, सच्चाई में,
न्याय और समरसता की छाँई में।
जब तक हम धरती की रक्षा करें,
आसमान की सीमा को अडिग धरें,
तब तक यह भारत अमर रहेगा,
जन-जन का प्रण सदा कहेगा।
. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित
✍️ "कमल की कलम से"✍️ (शब्दों की अस्मिता का अनुष्ठान)
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