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गनेश वंदना – - मगही में

गनेश वंदना – - मगही में

रचनाकार:-- डॉ रवि शंकर मिश्र "राकेश"

वक्रतुण्ड महाकाय, सूरज नियर उजास।
विघ्न हरैवाला देवा, राखे जग के आस॥


लाली रंग में रंगल, मोदक धरले हाथ।
भक्ति से जे बोले तो, ओकर होए साथ॥


शंकर गौरी के बेटा, जानल सबके बात।
बुद्धि–बिवेक सिखावै, संकट से करै पार॥


तीन नयन में जोत हे, रूपवा मन हर ले।
मन के मंदिर में बस जा, मोह के धूप चले॥


तूँ हउ पहिल पूजा के, गुनवा तोर अपार।
जे तोरा नाम लिहे, ओकर हो उद्धार॥


रिद्धि–सिद्धि साथे हे, चरण के छाँव में।
जे तोरा माने दिल से, बाँचै दुख-छाँह में॥


राजा होबे चाहे रंक, तोहीं सबके साथ।
मोदक लड्डू चढ़े तोरा, सुख के बरखा साथ।।


गनेश चतुर्थी अइल बा, नेवल भेंट संगे।
भक्त लोग के मनवा में, बाजे जय–जय रंगे॥


फूल, धूप, आ अरती ले, लोग करै पिरीत।
दर्शन तोहर भइल जइसे, मिलल सबके जीत॥


जब अनंत चतुर्दशी पर, बिदाई के घड़ी।
आँख से लोर गिरै तब, बोले "मोरया" बड़ी॥


अगिला बरस फिर आईह, करिह उपकार।
गणपति बाप्पा मोरया – पार लगा द पार॥

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