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एक दंत, विनायक,

एक दंत, विनायक,

परमेश्वर श्रीगणेश, विघ्नविनाशक, मंगलमूर्ति तथा बुद्धि-शक्ति-समृद्धि के प्रदाता हैं। उनके पावन आविर्भाव-दिवस पर, समस्त भारतवासी एकसंग हो, समन्वय एवं सौहार्द के दिव्य सूत्र में बंधकर, सामूहिक मंगलाचरण करें।

यह उत्सव न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, अपितु सामुदायिक एकता, सह-अस्तित्व एवं सृजनात्मक सहजीवन का द्योतक भी है। गणपति का विराट स्वरूप हमें स्मरण कराता है कि विवेक एवं विनम्रता के संगम से ही जीवन का यथार्थ सौंदर्य प्रकट होता है।

अतः हम सभी देशवासी, इस शुभ अवसर पर, परस्पर सहयोग, सद्भाव तथा सत्कार्य में संलग्न होकर, अपनी मातृभूमि को आदर्श राष्ट्र का स्वरूप प्रदान करने का संकल्प करें।

गणाधिपति हमें विघ्नों से मुक्त कर, समृद्धि, स्वास्थ्य एवं आनंद की ओर अग्रसर करें।
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एक दंत, विनायक,
तुम्हारी मुस्कान में छिपा है सृष्टि का रहस्य।
पार्वती की गोद से उठकर
तुम्हीं ने जगत को
संयम और ज्ञान का पहला उपहार दिया।


हे वक्रतुंड,
विघ्नों को तोड़ने वाले—
हर कठिन राह पर
तुम्हारा हाथ सहारा बनकर उठता है।
लम्बोदर!
तुम्हारे भीतर समाई है
धरती की गहराई, आकाश की अनंतता।


कृष्णपिंगाक्ष!
तुम्हारी दृष्टि में है गंभीरता,
जो मनुष्य को भीतर तक टटोल लेती है।
गजवक्त्र!
तुम्हारा रूप बताता है—
शक्ति केवल रूप में नहीं,
धैर्य और विवेक में भी छिपी होती है।


भालचंद्र!
माथे पर शोभित चाँद से
तुम हमें सिखाते हो
कि प्रकाश चाहे छोटा हो,
पर अंधकार को हराने के लिए
वह पर्याप्त है।


विनायक!
तुम हो प्रारंभ के देव,
तुम्हारे बिना कोई यात्रा नहीं पूरी होती।
तुम्हारे नाम से शुरू होती है हर पुकार,
हर संकल्प, हर साधना।


हे गणपति,
तुम हो मौन में छिपा ओंकार,
तुम हो मन का आत्मविश्वास,
तुम हो बुद्धि का दीपक,
तुम ही हो पथ का आरंभ
और पथ का रक्षक।

. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित
✍️ "कमल की कलम से"
✍️ (शब्दों की अस्मिता का अनुष्ठान)
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