"जीवन-माधुर्य का रहस्य"
जीवन का माधुर्य तभी सुलभ होता है जब व्यक्ति अतीत के शोकस्मारक बोझ को विस्मृति के गर्त में विलीन कर दे। पुरानी विफलताओं, पीड़ाओं एवं आघातों की स्मृति यदि चेतना पर निरंतर आच्छादित रहे तो वह वर्तमान की सौन्दर्य-ज्योति को मलिन कर देती है। स्मृतियों के मोहजाल में बँधा हुआ मन, स्वतन्त्रता का स्वाद कभी नहीं चख पाता एवं इस प्रकार जीवन का रसास्वादन भी शुष्क हो जाता है।
अतः आवश्यक है कि मनुष्य स्मृति के विष को त्यागकर वर्तमान क्षण की मधुरता का पान करे। प्रत्येक प्रभात एक नवीन सृष्टि है—संभावनाओं की भूमि, स्वप्नों का अंकुरण-क्षेत्र एवं आत्मोन्नति का आह्वान। विस्मरण की यह दुर्लभ शक्ति ही हमें आत्म-बंधन से मुक्त करती है एवं जीवन के अमृत-रस में भागीदार बनाती है।
. "सनातन"
(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार)
पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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