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"कभी न झंडा झुके हमारा "

"कभी न झंडा झुके हमारा "

डॉ. मेधाव्रत शर्मा, डी•लिट•
(पूर्व यू.प्रोफेसर)
जिस देश में सांवैधानिक अस्मिता कट्टर-मतान्ध नफ्रतपरस्त संगठन-विशेष के अमानवीय फासीवादी दुष्कृत्यों से निरंतर क्षत-विक्षत होकर निहत होने के कगार पर हो,जिस देश में छद्म हिन्दुत्व की पट्टी पढ़े- पढ़ाए गोडसेवादी लोग देश की आजादी के पुरोध महात्मा गाँधी और पं नेहरु पर बीभत्स गालियों की बौछार करने के उन्माद से पीड़ित हों; जिस देश में जाहिल-अपराधी-गुंडे विधायिका पर काबिज हों;जिस देश में किसान और युवजन पर आत्महत्या का दौर तारी हो;जिस देश में हर मस्जिद के अंदर मंदिर खोजने की सनक सवार हो;जिस देश में न्यायपालिका राजनीतिक सत्ता से त्रस्त होकर प्रकम्पायमान हो;जिस देश में धर्म जघन्य राजनीतिक हथियार के बतौर प्रयुज्यमान हो;जिस देश में झूठ के पुतले (outrageous liars)भोली जनता को बरगलाने में कामयाब हो रहे हों----
उस देश की आजादी के जश्न के मुबारक मौके पर,जाने क्यों,मुझपर निबिड़ उदासी का गहरा एहसास हावी है।
फिर भी,मेरी जुबान पर बेसाख़ता चढ़ आया है वाशिंग्टन ग्लेडन का निम्नांकित स्टांजा (stanza),जो नई सुबह की उम्मीद की लौ जगाता है--
"Long though fiends may fight,
Long though angels may hide.
I know, the truth and right
Shall have the universe on their side."
"सत्यमेव जयते!"
"जय तिरंगा,जय भारत!" 
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