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श्री लीलापुरुषोत्तम के प्राकट्य-दिवस (श्रीकृष्णजन्माष्टमी)के परम माङ्गलिक उपलक्ष्य में ---

श्री लीलापुरुषोत्तम के प्राकट्य-दिवस (श्रीकृष्णजन्माष्टमी)के परम माङ्गलिक उपलक्ष्य में ---

डॉ. मेधाव्रत शर्मा, डी•लिट•
(पूर्व यू.प्रोफेसर)
"क्लीं "
फटे व्योम,धधके धरा,प्राण मेरे
न रोके रुकेंगे बजी बाँसुरी है।
छके बावरे नीप यमुना मदोर्म्मिल,
कि मह मह निखिल वन सुमन-आँजुरी है।
कलेजा हुआ चाक जाता है बरबस,
कि क्लींकार की चोख मीठी छुरी है।
रसघन त्रिभंगी से लिपटी लपट-सी,
निकष पर कनक-सी कसी बीजुरी है।
मधु के महार्णव में उपला रही-सी,
कि अगजग कमल की विकल पाँखुरी है।
स्फुरित हो गहन नाद अन्तर्गुहा में,
कि जैसे बिरज में बजी बाँसुरी है।
फटे व्योम,धधके धरा,प्राण मेरे
न रोके रुकेंगे बजी बाँसुरी है।
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