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जन्माष्टमी

जन्माष्टमी

जय प्रकाश कुवंर
जन्माष्टमी हिन्दूओं का एक महान पर्व है, जिसे श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। यह पर्व भाद्रपद महीने के कृष्ण पक्ष के आठवें दिन को मनाया जाता है। इस दिन द्वापर युग में भारतवर्ष के मथुरा में वसुदेव देवकी के पुत्र के रूप में भगवान् विष्णु का जन्म कृष्ण के रूप में हुआ था। अष्टमी तिथि को मनाये जाने वाले इस महान पर्व का एक रोचक तथ्य यह भी है कि यह विष्णु के दशावतारों में आठवाँ अवतार है और भगवान् श्री कृष्ण वसुदेव देवकी के आठवीं संतान थे। भागवत पुराण के अनुसार श्री कृष्ण से पहले वसुदेव देवकी को जो सात पुत्र पैदा हुए थे उनका नाम क्रमशः कीर्तिमान, सुषेण, भद्रसेन, ऋजु, सम्मर्दन, भद्र और संकर्षण था। इन में पहले छ: का नाम षडगर्भ भी कहा जाता है। इनमें सातवें पुत्र संकर्षण को गर्भावस्था में देवकी के गर्भ से संकर्षण द्वारा वसुदेव की दूसरी पत्नी रोहिणी के गर्भ में स्थापित कर दिया गया था, जिन्हें जन्म के पश्चात बलराम के नाम से जाना गया। ऐसा माना जाता है कि भगवान् जब भी अवतार लेते हैं, तो अपनी समस्त शक्तियों के साथ आते हैं। इस तरह द्वापर युग में भी विष्णु भगवान् स्वयं कृष्ण के रूप में अवतार लिए थे और शेषनाग का अवतार उनके बड़े भाई बलराम के रूप में हुआ था।
देवकी कंस की बहन और वसुदेव की पत्नी थी। एक आकाशवाणी के अनुसार वसुदेव देवकी का आठवाँ पुत्र ही कंस के मृत्यु का कारण बनेगा, यह जानकर कंस ने वसुदेव देवकी को मथुरा में जेल में बंद कर रखा था और यह आदेश दे रखा था कि उन्हें जब भी कोई संतान हो उसे कंस के सामने लाया जाए। इस आदेश के मुताबिक कंस के सामने वसुदेव देवकी के पहले छ: पुत्र जन्म के बाद लाये गए और कंस ने जमीन पर पटककर सबका वध कर डाला। देवकी का सातवां गर्भ संकर्षण द्वारा रोहिणी के गर्भ में स्थापित कर दिया गया था, जो जन्म के समय तक बचा रहा। इस तरह संकर्षण अथवा बलराम जी का जन्म हुआ। आठवाँ बच्चा यानि कृष्ण जेल में जन्म लेने के बाद वसुदेव जी द्वारा नंद यशोदा के घर पहुँचा दिये गये थे, जो जिन्दा रहे और जिन्होंने बाद में कंस का वध किया।
इस प्रकरण में हम देखते हैं कि वसुदेव देवकी के कुल आठ पुत्र हुए , जिनमें बलराम तथा कृष्ण ही जिन्दा रहे , जो विष्णु तथा उनके अंश थे। इसके अलावा अन्य छ: पुत्र जो कंस द्वारा मार दिए गए थे वो अपने पुर्व जन्म में कौन थे और स्वयं वसुदेव देवकी भी अपने पूर्व जन्म में कौन थे। किस कारण से उन छ: पुत्रों को जन्म के साथ ही मरना पड़ा और किसके उकसाने के कारण वो सभी मारे गए। इसे हम संक्षेप में जानते हैं।
अपने पूर्व जन्म में वसुदेव का नाम सुतपा था और वो एक प्रजापति थे। वही देवकी का नाम पृश्नि था। उन्होंने भगवान् को अपने पुत्र रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी, जिसे भगवान् ने द्वापर युग में पूर्ण किया। वही एक अन्य कथा के अनुसार वे दोनों अपने पूर्व जन्म में महर्षि कश्यप और अदिति थे। जिन्होंने विष्णु को अपने पुत्र के रूप में चाहा था।
वसुदेव देवकी के अन्य सभी मारे गए पुत्र वास्तव में सभी छ: मुनियों के पुनर्जन्म थे और सभी पिता मरीची और माता उर्ण के पुत्र थे। मरीची स्वयं ब्रह्मा जी के दश मानस पुत्रों में से एक थे।
एक बार ब्रह्मा जी ने काम विषय से पीड़ित होकर अपनी ही पुत्री का पीछा किया। ऐसे समय में इन छ : मुनियों या देवताओं ने ब्रह्मा जी के इस निंदनीय और घृणित कार्य की आलोचना की, जो कि एक महान अपराध था। इस पर ब्रह्मा जी ने क्रोधित होकर उन्हें कालनेमि नामक असुर के पुत्रों के रूप में जन्म लेने का शाप दे दिया।कालनेमि के पुत्र के रूप में जन्म धारण करने के पश्चात समयानुसार इनका जन्म पुनः हिरण्यकशिपु के पुत्रों के रूप में हुआ।
बार बारअसुर पुत्रों के यहाँ जन्म लेने के क्रम में उन्हें अपने पुर्व जन्म का कुछ आभास हुआ और उन्होंने इस असुर पुनर्जन्म से राहत पाने के लिए ब्रह्मा जी की तपस्या की।
तपस्या उपरांत उन्होंने अन्य असुरों के अनुसार ही ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त किया कि वो कभी भी देव, गंधर्व अथवा असुर से नहीं मारे जाएं।
ब्रह्मा जी की पूजा और वरदान से उनका पिता हिरण्यकश्यपु क्रोधित हो गया और उन्हें पाताल में निर्वासित कर दिया और शाप दे दिया कि वो वहां सैकड़ों हजारों वर्षों तक सोये पड़े रहेंगे। पुनः जब द्वापर युग में कालनेमि का जन्म कंस के रूप में होगा तब ये षडगर्भ उसकी बहन देवकी की गर्भ से एक एक करके जन्म लेंगे। जब कंस उन सभी को मार देगा, तब जाकर उन्हें ब्रह्मा जी के शाप से स्थायी राहत मिलेगी।
जब वसुदेव जी अपने पहले जन्मे बच्चे को लेकर कंस के पास गये तो कंस ने इसे वापस ले जाने के लिए कहा। आकाशवाणी के अनुसार उसे देवकी के पहले सात पुत्रों से कोई खतरा नहीं था। अतः उनकी हत्या करने में उसे कोई दिलचस्पी नहीं थी। उनके लिए खतरा केवल देवकी का आठवाँ पुत्र था।
इसी ऐन मौके पर नारद ऋषि कंस के पास पधारे और देवकी के पहले जन्मे बच्चे को वसुदेव जी को लौटाते हुए देखकर उन्होंने कंस को उकसाया कि वो इस मामले में कोई जोखिम न उठायें। ऐसा माना जाता है कि नारद ऋषि के उकसाने पर ही कंस ने देवकी के छ:पुत्रों को एक एक कर उनके जन्म लेते ही मारा।
वास्तव में नारद ऋषि देवकी के नवजात पुत्रों को कंस द्वारा मरवाकर कोई धर्म विरूद्ध कार्य अथवा पाप कर्म नहीं कर रहे थे, बल्कि उन शापित छ: मुनियों का उद्धार कराने में सहायता कर रहे थे, जो शाप वश अनेक जन्मों से असुर योनि में भटक रहे थे। और उनके उकसाने अथवा प्रयास से अंततः उनका उद्धार हुआ।
बाद में श्रीकृष्ण द्वारा कंस के वध किये जाने पर और वसुदेव देवकी की जेल से मुक्ति मिलने पर श्रीकृष्ण ने वसुदेव देवकी को उनके छ:मृत पुत्रों से मिलवाया था।
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