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बालाघाट: सतपुड़ा की वादियों में 'हरा सोना' और 'ताम्र नगरी'

बालाघाट: सतपुड़ा की वादियों में 'हरा सोना' और 'ताम्र नगरी'

सत्येंद्र कुमार पाठक
मध्य प्रदेश के मानचित्र पर दक्षिण-पूर्वी कोने में स्थित बालाघाट एक ऐसा जिला है, जहाँ प्रकृति अपनी पूरी भव्यता के साथ मुस्कुराती है। 'बालाघाट' शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है—'घाटों के ऊपर स्थित'। यह नाम इसकी भौगोलिक संरचना को सटीक रूप से परिभाषित करता है, जहाँ सतपुड़ा की घुमावदार पर्वत श्रृंखलाएँ और वैनगंगा की कलकल करती धाराएँ एक अद्भुत संगीत रचती हैं। लगभग 9,245 वर्ग किमी में फैला यह जिला न केवल खनिज संसाधनों में धनी है, बल्कि यह अपनी जनजातीय संस्कृति और जैव विविधता के लिए भी विश्व विख्यात है। बालाघाट की पहचान 'वैनगंगा नदी' के बिना अधूरी है। यह नदी जिले के बीचों-बीच एक जीवनरेखा की तरह बहती है, जिससे यहाँ की मिट्टी अत्यंत उपजाऊ बनी रहती है। जिले का लगभग 53% हिस्सा सघन वनों से आच्छादित है। जब आप बालाघाट की सीमाओं में प्रवेश करते हैं, तो सड़क के दोनों ओर ऊँचे-ऊँचे सागौन और बांस के पेड़ आपका स्वागत करते हैं। यहाँ की आबोहवा में एक खास तरह की ताज़गी है, जो शहरी कोलाहल से दूर सुकून की तलाश करने वालों को अपनी ओर खींचती है।
बालाघाट को 'खनिज संपन्न' कहना एक अल्पोक्ति होगी; यह वास्तव में भारत का एक आर्थिक पावरहाउस है।
मैंगनीज की राजधानी: बालाघाट की भरवेली खदान एशिया की सबसे बड़ी भूमिगत मैंगनीज खदान है। यहाँ से निकलने वाला उच्च गुणवत्ता वाला मैंगनीज न केवल भारत की स्टील इंडस्ट्री की रीढ़ है, बल्कि विदेशों में भी निर्यात किया जाता है। जिले का मलजखंड क्षेत्र देश का सबसे बड़ा 'ओपन कास्ट' तांबा खनन केंद्र है। यहाँ की पहाड़ियों के सीने में छिपे तांबे के भंडार भारत की तांबा आवश्यकता का एक बड़ा हिस्सा पूरा करते हैं। इन खदानों की विशालता और यहाँ होने वाला मशीनी कार्य किसी इंजीनियरिंग चमत्कार से कम नही है। बालाघाट को मध्य प्रदेश का 'धान का कटोरा' कहा जाता है। यहाँ की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार खेती है। यहाँ के खेतों में उगने वाला 'चिन्नौर चावल' अपनी विशिष्ट महक और स्वाद के लिए जाना जाता है। हाल ही में इसे मिला जीआई टैग (Geographical Indication) इस जिले की कृषि विरासत पर एक वैश्विक मुहर है। मानसून के दौरान जब धान की रोपाई होती है, तो मीलों तक फैले हरे-भरे खेत आँखों को असीम शांति प्रदान करते हैं।यदि आप वन्यजीव प्रेमी हैं, तो बालाघाट आपके लिए किसी तीर्थ से कम नहीं है। विश्व प्रसिद्ध कान्हा राष्ट्रीय उद्यान का एक बड़ा और सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा (मुक्की गेट) इसी जिले में आता है। कान्हा की साल की वादियों में बाघों की दहाड़ सुनाई देती है।भूरसिंह द बारहसिंघा: यह दुनिया का एकमात्र स्थान है जहाँ 'बारासिंघा' (दलदली हिरण) की दुर्लभ प्रजाति पाई जाती है। कान्हा की घास के मैदानों में दौड़ते वन्यजीव और सुबह की धुंध के बीच जंगल सफारी का अनुभव जीवनभर की याद बन जाता है।
इतिहास के झरोखे से: लांजी और गोंड साम्राज्य : बालाघाट का इतिहास वीरता और स्थापत्य कला की कहानियों से भरा है। यह क्षेत्र प्राचीन काल में गोंड राजाओं के अधीन था।लांजी का किला: 12वीं शताब्दी में निर्मित यह किला गोंड राजाओं की शक्ति का प्रतीक है। किले के अवशेष, इसकी बुर्ज और प्राचीन मूर्तियाँ आज भी बीते कल की गौरवगाथा सुनाती हैं। हटा की बावड़ी: स्थापत्य कला का एक और अनूठा नमूना हटा की बावड़ी है, जो प्राचीन काल के जल प्रबंधन और कलात्मक सोच को दर्शाती है ।प्रकृति ने बालाघाट जिले को दिल खोलकर उपहार दिए हैं: गांगुलपारा झरना: पहाड़ियों से गिरता पानी और चारों ओर की हरियाली इसे एक स्वप्निल स्थान बनाती है। मानसून में यहाँ का दृश्य किसी विदेशी हिल स्टेशन जैसा प्रतीत होता है। धूति बांध: 1923 में वैनगंगा नदी पर ब्रिटिश इंजीनियर सर जॉर्ज हैरियट द्वारा बनाया गया यह बांध अपनी सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है। इसके विशाल गेट और बहता पानी एक अद्भुत नज़ारा पेश करते हैं।।राजीव सागर (बावंथड़ी)अंतरराज्यीय परियोजना न केवल खेतों की प्यास बुझाती है, बल्कि पर्यटन के लिहाज से भी एक शांत और सुंदर स्थल है। बालाघाट की संस्कृति में सादगी और उत्सवों का अनूठा मेल है। यहाँ गोंड, हल्बा और पवार जैसी जनजातियों और समुदायों का निवास है। यहाँ के लोक गीतों, कर्मा नृत्य और मड़ई मेलों में एक अलग ही ऊर्जा देखने को मिलती है। यहाँ के लोग मृदुभाषी और अतिथि सत्कार के लिए जाने जाते हैं।आज का बालाघाट शिक्षा और विकास की ओर भी तेज़ी से बढ़ रहा है। नक्सलवाद के काले साये को पीछे छोड़कर अब यह जिला विकास, शांति और पर्यटन की नई इबारत लिख रहा है। यहाँ के रेल मार्ग (जबलपुर-गोंदिया ब्रॉड गेज) ने इसे सीधे बड़े महानगरों से जोड़ दिया है, जिससे व्यापार और पर्यटन के नए द्वार खुले हैं।
बालाघाट केवल मध्य प्रदेश का एक जिला नहीं है, बल्कि यह एक अनुभव है। यह वह स्थान है जहाँ खदानों का कठोर लोहा और वनों की कोमल हरियाली एक साथ सह-अस्तित्व में हैं। यहाँ की वैनगंगा नदी केवल पानी नहीं, बल्कि संस्कृति और समृद्धि का प्रवाह है। यदि आप भारत के वास्तविक 'हृदय प्रदेश' की धड़कन महसूस करना चाहते हैं, तो बालाघाट की यात्रा अवश्य करें। यहाँ की मिट्टी की सोंधी खुशबू, चिन्नौर चावल का स्वाद और कान्हा के बाघों की गर्जना आपको बार-बार यहाँ आने पर विवश कर देगी।


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