उमगा पर्वत समूह: इतिहास, भूगोल और सांस्कृतिक विरासत का एक संस्मरण
सत्येन्द्र कुमार पाठक
11 नवंबर 2022 की एक सुनहरी की सुबह, मैं साहित्यकार और इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक जी और जीविका, औरंगाबाद के ट्रेनिंग ऑफिसर प्रवीण कुमार पाठक जी के साथ औरंगाबाद जिले की एक गहन सांस्कृतिक यात्रा पर निकलने का निश्चय किया. हमारी शुरुआत देव सूर्य मंदिर के गर्भगृह में भगवान सूर्य के दर्शन और उसके परिसर, सूर्यकुंड व देव किले के अवलोकन से हुई. इसके बाद, हमारी मोटरसाइकिलें मदनपुर प्रखंड में स्थित रहस्यमय उमगा पर्वत समूह की ओर चल पड़ीं. यह यात्रा केवल एक दर्शनीय स्थल का भ्रमण नहीं, बल्कि इतिहास, भूगोल और सांस्कृतिक विरासत के त्रि-आयामी संगम को समझने का प्रयास था.
उमगा पर्वत समूह की ओर बढ़ते हुए, पथरीले रास्ते और हरियाली से घिरी वादियाँ एक अलग ही अनुभूति दे रही थीं. यह क्षेत्र छोटा नागपुर पठार के उत्तरी विस्तार का हिस्सा है, जिससे यहाँ की भू-संरचना में पहाड़ियाँ और चट्टानी इलाके प्रमुख हैं. जनवरी की हल्की धूप में भी इन पहाड़ों में एक प्राचीन गंभीरता थी. यह भूगोल ही है जिसने सदियों से इस स्थान को बाहरी प्रभावों से कुछ हद तक संरक्षित रखा, जिससे इसकी सांस्कृतिक विरासत आज भी बची हुई है. पहाड़ों की शांति और स्वच्छ हवा ने शहरी शोरगुल से दूर एक सुकून भरा माहौल प्रदान किया. भूगर्भीय रूप से, यहाँ ग्रेनाइट और अन्य कठोर चट्टानों की बहुतायत है, जिनका उपयोग प्राचीन मंदिरों के निर्माण में किया गया था, जैसा कि हमने आगे देखा. उमगा पर्वत समूह का इतिहास अत्यंत समृद्ध और बहुस्तरीय है. स्थानीय किंवदंतियों और पुरातात्विक साक्ष्यों के अनुसार, यहाँ के कुछ मंदिर त्रेता युग के बताए जाते हैं. उमगा में हमने सबसे पहले मुख्य सूर्य मंदिर के गर्भगृह में स्थित भगवान सूर्य के दर्शन किए. इस मंदिर की वास्तुकला देव सूर्य मंदिर से काफी मिलती-जुलती है, जो इसके प्राचीन निर्माण शैली का प्रमाण है. सत्येन्द्र जी ने बताया कि यह स्थान कभी मंदिर निर्माण की 'फैक्ट्री' के रूप में जाना जाता था, जहाँ 200-300 वर्षों तक मंदिरों का लगातार निर्माण होता रहा. पहाड़ों पर पत्थरों को तराशने के निशान आज भी उस समय की उन्नत शिल्पकला और इंजीनियरिंग का प्रमाण देते हैं. 15वीं शताब्दी के शिलालेख बताते हैं कि इस क्षेत्र पर राजा भैरवेंद्र का शासन था, जिन्होंने यहाँ एक किला बनवाया और कई मंदिर स्थापित किए. हालाँकि, मुगल काल के दौरान उमगा को भारी क्षति पहुँची, और यहाँ स्थित 52 देवी-देवताओं के अधिकांश मंदिर नष्ट कर दिए गए. यह एक दुखद सत्य है कि समय और आक्रमणों ने कितनी विरासत को निगल लिया. ब्रिटिश काल में अलेक्जेंडर कनिंघम जैसे पुरातत्वविदों ने इस स्थल को पुनः खोजा, जिससे इसकी ऐतिहासिक महत्ता सामने आई. राजा राय भान सिंह ने बाद में कुछ मंदिरों का जीर्णोद्धार करवाकर हिंदू परंपराओं को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया है। उमगा की सांस्कृतिक विरासत इसकी सबसे बड़ी विशेषता है. यह केवल एक सूर्य उपासना का केंद्र नहीं, बल्कि सौर, शाक्त, शैव और वैष्णव संप्रदायों का एक अनूठा संगम रहा है. हमने सहस्त्रलिंग भगवान शिव मंदिर के दर्शन किए, जहाँ हजारों शिवलिंगों की कल्पना मात्र से मन श्रद्धा से भर गया. इसके बाद, उमगेश्वरी गुफा के भीतर माता उमगेश्वरी, माता काली, भगवान विष्णु, भगवान शिव और माता पार्वती के मंदिरों को देखा. यहाँ बिखरे पाषाण युक्त मंदिरों के अवशेष और विभिन्न देवी-देवताओं की मूर्तियाँ उस समय की धार्मिक सहिष्णुता और कलात्मक उत्कृष्टता को दर्शाती हैं. पत्थरों पर उकेरी गई बारीक शिल्प कलाएँ, विशेष रूप से शिव की जाँघ पर बैठी पार्वती की प्रतिमा, यह प्रमाणित करती हैं कि यह स्थान केवल सूर्य उपासना का नहीं, बल्कि विविध परंपराओं का केंद्र रहा है.
यह यात्रा केवल एक प्राचीन स्थल का भ्रमण नहीं थी, बल्कि बिहार की आत्मा में झाँकने, उसके गौरवशाली अतीत को महसूस करने और उसकी समृद्ध विरासत से जुड़ने का एक गहरा अनुभव था. उमगा पर्वत समूह ने मेरे मन पर एक अमिट छाप छोड़ी है, जो मुझे बार-बार इस भूमि की ओर खींचने के लिए प्रेरित करेगी.
करपी , अरवल , बिहार 804419 9472987491
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