"मैं चन्द्रशेखर हूँ"
मैं चन्द्रशेखर हूँ—
कोई नाम नहीं,
एक नक्षत्र हूँ समय की ललाट पर।
मेरे स्वप्न में बारूद की गंध है,
मेरे सीने में लावा है—
किसी भी क्षण फूट पड़ने को आतुर।
मैं धधकती दोपहर का वह सूरज हूँ
जो केवल ताप नहीं देता,
बल्कि झुलसाता है
हर उस झूठ को
जो सत्ता की सलवटों में छिपा बैठा है।
मैं भूगोल नहीं—
इतिहास का वह मोड़ हूँ
जहाँ एक युवा ने कहा था—
“आज़ाद हूँ, आज़ाद रहूँगा।”
मेरी हड्डियाँ
आज भी धरती में अंगारे बनकर धड़कती हैं।
हर वह गोली जो मेरी ओर चली,
एक प्रश्न बन गई
—कि किससे डरते हो तुम?
मैं शपथ हूँ,
उस माँ की आँखों का विश्वास,
जिसने अपने आँचल से ढक दिया था
मेरे क्रांति से तपते माथे को।
मैं चुप नहीं,
मैं विवश नहीं,
मैं वही धधकता गीत हूँ
जो बार-बार जन्म लेता है
जब भी कोई घुटन महसूस करता है—
अपने ही देश की हवा में।
मुझे मत ढूँढ़ो
किसी स्मारक पर लिखे नाम में।
मैं हूँ
हर उस साँस में
जो आज़ादी को महज शब्द नहीं,
जवाबदारी मानती है।
मैं नारा नहीं,
आग्रह हूँ—
कि सवाल पूछो,
कि अन्याय पर मौन मत रहो,
कि अगर चिंगारी हो—
तो बुझने की नहीं, जलाने की सोचो।
मैं चन्द्रशेखर हूँ—
एक विचार,
एक विद्रोह,
एक वचन—
जो कभी शहीद नहीं होता।
. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित
✍️ "कमल की कलम से"✍️ (शब्दों की अस्मिता का अनुष्ठान)
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