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काल गति

काल गति

जय प्रकाश कुवंर
काल गति जाय नहीं पहचानी।।
कितना मुरख मानव मन है,
करत फिरे मनमानी।
अगले क्षण क्या होने को है,
कौन सका है जानी।।
काल गति जाय नहीं पहचानी।।
सूर्यवंशी और अयोध्या के राजा,
हरिश्चन्द्र सा ज्ञानी।
धर्म और सत्य की रक्षा हेतु,
भरा डोम घर पानी।
काल गति जाय नहीं पहचानी।।
शिव भक्त विजयी सब देवा,
महावीर रावण अभिमानी।
सीता माता हरण के चलते,
जिसे जान पड़ी थी गंवानी।।
काल गति जाय नहीं पहचानी।।
प्रजातंत्र के देश में जिसने,
राजा बनने को ठानी।
गद्दी पा अभिमान किया,
उसे जेल पड़ी है जानी।।
काल गति जाय नहीं पहचानी।।
मुरख मन सब देख के संभलो,
किसकी चली मनमानी।
छल कपट जिसने छोड़ दिया है,
वही है सच्चा ज्ञानी।।
काल गति जाय नहीं पहचानी।।
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