जाति देखिके भोट दियाई
मार्कण्डेय शारदेय:सुन ल झगरू! मँगरू भइया!
सुनु कलवतिया! काली मइया!
सुनु सतरोहन! सुनु बँसरोपन!
सुनु बबुओ रघुनाथ! कन्हइया!
कतनो केहू आई जाई।
जाति देखिके भोट दियाई।।
भले रहो ऊ चोर-उचक्का,
भले रहो ऊ दुसुमन पक्का,
भले घिनाला बिरादरी से
भले भगावे मारत धक्का,
भले न कवनो कामे आई।
जाति देखिके भोट दियाई।।
कतनो आपन लात चलाई,
तबहूँ आपन उहे कहाई,
ओकर उन्नति, आपन उन्नति,
भले न लउकी तनिक भलाई,
ऊ जीती त कुल तरि जाई।
जाति देखिके भोट दियाई।।
भले करे ऊ रोज घोटाला,
भले विकास-राशि खा जाला,
भले सड़क, शिक्षा, इलाज के
सभ सुबिधन प लागी ताला।
ओकर खुशी मनावल जाई।
जाति देखिके भोट दियाई।।
हँ; केहू कतनो समुझाई,
नीमन नेता भले बुझाई,
बिनती सुनत भरोस दियाई,
टस-से-मस ना होखल जाई,
बात न मानि कुजात कहाई।जाति देखिके भोट दियाई।।
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