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जाति धर्म का जहर

जाति धर्म का जहर

कोबरा के जहर का,
फिर भी इलाज है।
आदमी का जहर अब,
बनता जा रहा बेइलाज है।।
इस देश में आदमी को,
आदमी से कटवाया जा रहा है।
शुद्ध रक्त में जहरीला,
रक्त चढ़ाया जा रहा है।
दिन प्रतिदिन नवयुवक पीढ़ी को,
जाति धर्म का पाठ पढ़ाया जा रहा है।
हमारी गौरवशाली संस्कृति को,
जड़ से भूलाया जा रहा है।।
किताबों से समाज जोड़ने वाले,
पन्ने फाड़े जा रहे हैं।
किताबों में समाज तोड़ने वाले,
पन्ने जोड़े जा रहे हैं।।
ऐसा नहीं है कि इसका हश्र,
हम नहीं जानते हैं।
पर आज अपने गुरूर को ही,
हम सही मानते हैं।
जाति और धर्म को गाली,
आम बात हो गयी है।
हम कभी सभ्य थे, पर
आज हमारी सभ्यता मर गयी है।।
पता नहीं इस जहर को फैलाने में ,
किसका और कितना दोष है।
राजनीतिक प्रतिस्पर्धा में,
एक दूसरे पर काफी रोष है।।
पढ़े लिखे नेता भी,
बन गये विद्याबैल हैं।
पढ़ लिख कर बुद्धि होने के जगह,
मन में फैल गया मैल है।।
ऐसे तो केवल पीढ़ियां बढ़ेगी पर,
भारतीय संस्कृति बच न पाएगी।
आदमी द्वारा फैलाया जहर,
जब शरीर में घर कर जाएगी।।
चर्चाएं तो इस मुद्दे पर,
रोज हो रही हैं।
पर कुछ हठधर्मीयों के चलते,
मुद्दा अपना चमक खो रही है।।
गुजारिश है इस जहर को,
पूर्ण फैलने से संभालो।
उठो ऐ भारतवासियों, अभी समय है,
देश और संस्कृति को बचालो।।
जाति धर्म के जहर को,
फैलने से रोकना अनिवार्य है।
मेरा मत है, हर देशवासी को,
इस मुद्दे पर सोचना, अपरिहार्य है।।

जय प्रकाश कुवंर
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